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________________ [२७८ ऐसे सौम्य दर्शन युक्त महात्मा बाहुबली चन्द्र जैसे सूर्य के पास जाता है उसी प्रकार ऋषभ स्वामी के पास गए। तीर्थंकर को प्रदक्षिणा देकर एवं तीर्थ को नमस्कार कर जगत्पूज्य बाहुबली मुनि प्रतिज्ञा में उत्तीर्ण होकर केवलियों की पर्षदा में जा बैठे। (श्लोक ७९६-७९८) (पंचम सर्ग समाप्त) षष्ठ सर्ग भगवान ऋषभदेव के शिष्य, अपने नाम की तरह ग्यारह अंग का पठन करने वाले साधु गुण युक्त एवं हस्तिपति के साथ जिस प्रकार कलभ (हस्ती शावक) रहता है इसी प्रकार स्वामी के साथ सर्वदा विचरणकारी भरत पुत्र मरीचि स्वामी के साथ ग्रीष्मकाल में विहार कर रहे थे। एक दिन द्विप्रहर के समय चारों ओर के पथ की धूल सूर्य किरणों से इस प्रकार प्रखर हो उठी मानो लौह धौंकनी से हवा कर उन्हें उद्दीप्त किया गया है । जैसे अदृश्य अग्नि की ज्वाला हो इस प्रकार उत्तप्त आवर्त द्वारा पथ रुद्ध हो गया था। उसी समय अग्नि उत्तप्त ईषत् आर्द्र ईधन की तरह उनका शरीर सिर से पैर तक स्वेद धारा से पूरित हो गया था। जल में भिगोए सूखे चमड़े की गन्ध की तरह पसीने में भीगे वस्त्रों के कारण उनके शरीर के मैल की दुःसह दुर्गन्ध पा रही थी। उनके पाँव जले जा रहे थे। उस समय उनकी स्थिति उत्तप्त स्थान में स्थित नकुल जैसी हो रही थी। ग्रीष्म के कारण वे प्यास से प्राकुल होकर सोचने लगे : __(श्लोक १-७) ___केवल ज्ञान और केवल दर्शन रूप सूर्य-चन्द्र द्वारा शोभित होकर मेरु पर्वत तुल्य त्रिलोक गुरु ऋषभदेव स्वामी का मैं पौत्र हूं और अखण्ड छह खण्ड सहित पृथ्वीमण्डल के इन्द्र एवं विवेक में अद्वितीय निधि रूप राजा भरत का मैं पुत्र हूं। चतुर्विध संघ के समक्ष ऋषभदेव स्वामी से मैंने पंच महाव्रत धारण कर दीक्षा ग्रहण की.। अतः जिस प्रकार वीर पुरुषों का युद्ध से भागना उचित नहीं होता उसी प्रकार इस स्थान को त्याग कर घर जाना मेरे लिए उचित नहीं होगा। वह लज्जास्पद है; किन्तु वृहद् पाषाण को जिस प्रकार बहुत कठिनता से उठाया जा सकता है उसी प्रकार
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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