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रहा । जंगली भैंसे महा-महीरुह के अङ्गों की तरह उनके शरीर पर टक्करें मारते और अपनी देह रगड़ कर खुजली मिटाते । बाघिनियाँ उनके शरीर को पर्वत का निम्न भाग समझकर उनके सहारे सुखपूर्वक रात्रि व्यतीत करतीं । हाथी सल्लकी वृक्ष की डाल के भ्रम से उस महात्मा के हाथ-पाँव खींचता; किन्तु वे उससे खिंचते नहीं थे अतः हाथी लज्जित होकर चला जाता। चमरी गायें निर्भय होकर वहाँ पातीं और मुह ऊँचा कर आरे-सी कंटकमय जीभ से उस महात्मा की देह को चाटतीं। उनके शरीर को शत-शत शाखा प्रशाखा युक्त लताओं ने इस प्रकार जकड़ लिया था जैसे मृदङ्ग में चमड़े की पट्टी जड़ी रहती है। उनकी देह के चारों ओर सरकण्डों के वृक्ष अंकुरित होने लगे। उससे वे इस प्रकार शोभित होते मानो पूर्व स्नेहवश आगत तीर युक्त तूणीर हो । वर्षा ऋतु के कर्दम में डूबे उनके पाँवों को बींधकर सौ-पाँवों वाले डाभ की शूलें अंकुरित हो गई थीं। लता-यावत उनकी देह पर पक्षियों ने बिना किसी बाधा के घोंसले बना लिए। वन्य-मयूर के शब्दों से भीत हजारहजार सर्प लता से गहन होने के कारण उनके शरीर पर चढ़ते । उनके शरीर पर चढ़कर लटकते हुए सों के कारण बाहुबली हजार हाथों वाले लगते। उनके पाँवों के पास बने विवर से निकलकर सर्प उनके पाँवों से इस प्रकार लिपट जाते कि वे उनके कड़े से लगते ।
- (श्लोक ७५७-७७७) इस प्रकार ध्यानलीन बाहुबली का एक वर्ष विचरण करते हुए अनाहारी भगवान ऋषभदेव के एक वर्ष की तरह व्यतीत हो गया। जब एक वर्ष पूर्ण हो गया तब विश्व वत्सल भगवान ऋषभ ने ब्राह्मी व सुन्दरी को बुलाकर कहा-अब बाहुबली अनेक कर्मों को क्षयकर शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की तरह अन्धकार रहित हो गए हैं। किन्तु पर्दे के पीछे रखा वस्त्र जिस प्रकार दिखलायी नहीं पड़ता उसी प्रकार मोहनीय कर्म के अंश रूप मान के कारण उन्हें केवल ज्ञान नहीं हो रहा है । अब तुम्हारी बात सुन कर वे मान छोड़ देंगे। अतः तुम लोग उपदेश देने के लिए उनके निकट जानो। उपदेश देने का यही योग्य समय है।
__(श्लोक ७७८-७८२) प्रभु के चरणों में प्रणाम कर उनकी प्राज्ञा को शिरोधार्य करती हुई ब्राह्मी व सुन्दरी बाहुबली के पास जाने को रवाना हुई ।