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________________ २७५ सका तभी पिता का वास्तविक पुत्र कहलाने का अधिकारी होऊँगा।' (श्लोक ७५०-७५३) इस भाँति पश्चात्ताप रूपी जल में विषाद रूपी कर्दम को धोकर राजा भरत ने बाहुबली के पुत्र चन्द्रयशा को सिंहासन पर बैठाया। चन्द्रयशा से चन्द्रवंश का प्रारम्भ हुअा और यह शत-शत शाखाओं में विभाजित हुआ। इस प्रकार वे पुरुष रत्नों की उत्पत्ति के कारण रूप हुए। __ (श्लोक ७५४-७५५) फिर राजा भरत बाहुबली को नमस्कार कर परिवार सहित स्वर्ग राज्यलक्ष्मी की सहोदरा तुल्य अपनी अयोध्या नगरी को लौट गए। (श्लोक ७५६) भगवान् बाहबली मानो पृथ्वी से बहिर्गत हए हों अथवा आकाश से अवतरित हुए हों इस प्रकार अकेले ही वहाँ कायोत्सर्ग ध्यान में निरत हो गए। ध्यानलीन बाहुबली की दोनों आँखें नासिका के अग्रभाग पर स्थित थीं और मानो दिकसमूह को वश में करने की शंक हों इस प्रकार स्थिर भाव से दण्डायमान वे महात्मा मुनि शोभित होने लगे। अग्नि स्फुलिंग की तरह तप्त धल बरसाने वाली ग्रीष्मकालीन अाँधी वे वनवक्षों की तरह सहन कर रहे थे। अग्नि-कुण्ड-सा मध्याह्न का सूर्य उनके मस्तक पर ताप दे रहा था फिर भी ध्यान रूपी अमृत में लीन उन महात्मा पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। सिर से पैर पर्यन्त देह पर लगी हुई धूल पसीने से कर्दम की तरह हो रही थी। अतः वे कर्दम निर्गत वाराह की तरह शोभित हो रहे थे। वर्षाकाल में जलवर्षणकारी हवा से एवं वृक्ष को कँपा देने वाली मूसलाधार वर्षा से भी वे विचलित नहीं हुए। वे पर्वत की तरह स्थिर रहे । पर्वत शिखर को थर्रा देने वाली बिजली भयंकर शब्द करती हुई गिरती फिर भी वे कायोत्सर्ग ध्यान से विचलित नहीं होते। जंगल के सरोवर की सीढ़ियों पर जिस प्रकार काई जम जाती है उसी प्रकार उनके पाँवों पर प्रवहमान जल से काई जम गई थी। शीत के दिनों में नदी का जल जम जाने से नदी विनाशकारी हो उठती थी; किन्तु ध्यान रूपी अग्नि में कर्म रूपी ईधन को जलाने में प्रयासरत बाहुबली वहीं आरामपूर्वक खड़े रहते । हिम से वृक्ष को क्लेश प्रदान करने वाली हेमन्त ऋतु की रात्रि में भी बाहुबली का धर्म-ध्यान कुन्द फूल की तरह बढ़ता
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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