SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४] और जगत् को अभयदान देने का व्रत धारण करने वाले पिता के पथ पर पांथ की तरह चलूँगा । ( श्लोक ७२५ - ७३९ ) I ऐसा कहकर साहसी पुरुषों में अग्रणी महासत्त्ववान् बाहुबली ने उत्तोलित मुष्ठि से ही अपने मस्तक के केश उखाड़ डाले । उसी समय देवताओं ने साधु-साधु कहकर उनके मस्तक पर पुष्पवृष्टि की । फिर पंच महाव्रत धारण कर वे मन ही मन सोचने लगे- मैं अभी पिता के चरणों में उपस्थित नहीं होऊँगा । कारण, यदि अभी गया तो मेरे छोटे भाइयों ने, जिन्होंने मुझसे पूर्व ही व्रत ग्रहरण किया है और ज्ञानी हैं, उनमें मैं छोटा गिना जाऊँगा । अतः मैं अभी यहीं ज्ञान रूपी अग्नि प्रज्वलित करूँगा और उससे घाती कर्मों को क्षय कर केवल ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् ही स्वामी की पर्षदा में जाऊँगा । (श्लोक ७४०-७४४) ऐसा निश्चय कर मनस्वी बाहुबली अपने दोनों हाथ लम्बे कर प्रतिमा की तरह उसी स्थान पर कायोत्सर्ग ध्यान में अवस्थित हो गए। अपने भाई की इस स्थिति को देखकर राजा भरत अपने कुकर्म पर विचार कर मानो पृथ्वी में प्रवेश करना चाह रहे हों इस प्रकार माथा नीचा कर खड़े हो गए । तदुपरान्त मानो मूर्तिमान शान्त रस हों इस प्रकार अपने भाई को अल्प ऊष्म अश्रु से, जैसे अवशेष क्रोध को प्रवाहित कर दिया हो, इस प्रकार राजा भरत ने प्रणाम किया । प्रणाम करते समय बाहुबली के पदनख रूपी दर्पण में राजा भरत का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ा। देखकर लगा मानो तीव्र उपासना के लिए उन्होंने बहुरूप धारण किया है । तत्पश्चात् बाहुबली का गुण स्तवन और अपवाद रूपी रोग की प्रौषधि समान आत्म-निन्दा करने लगे । ( श्लोक ७४५-७४९) 'हे भाई, तुम धन्य हो कि मुझ पर अनुकम्पा कर तुमने राज्य काही परित्याग कर दिया। मैं पापी और दुर्मद हूँ जो कि असन्तुष्ट होकर तुम्हें इस प्रकार कष्ट दिया । जो निज शक्ति को नहीं जानते, अन्यायी और लोभ के वशवर्ती हैं उनमें मैं धुरन्धर हूँ । जो व्यक्ति इस राज्य को संसाररूपी वृक्ष का बीज नहीं समझते वे अधम हैं । मैं उनसे भी अधिक प्रथम हूँ । कारण, ऐसा जानकर भी मैं राज्य का परित्याग नहीं करता हूँ । तुम्हीं पिता के सच्चे पुत्र हो तभी तो तुमने उनका मार्ग अङ्गीकार किया है । यदि मैं तुम्हारे जैसा हो
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy