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२६६] शब्द को सुनकर देवगण असमय में दैत्यों के उपद्रव की आशंका करने लगे।
(श्लोक ५९७-६०२) वाहुबली के सिंहनाद को सुनकर भरत ने पुनः इस प्रकार सिंहनाद किया कि देव-पत्नियाँ हिररिणयों की तरह भयभीत हो गयीं। मानो क्रीड़ा छल से लोक को भयभीत करेंगे इस प्रकार चक्री और बाहुबली ने क्रमशः सिंहनाद किया। ऐसा करते-करते हाथी की सूड और सर्प के शरीर की तरह राजा भरत का सिंहनाद धीरे-धीरे छोटा होने लगा। नदी के प्रवाह की तरह एवं सज्जनों के स्नेह को तरह बाहुबली का सिंहनाद अधिकाधिक बढ़ने लगा। इस प्रकार शास्त्रार्थ में बादी जिस प्रकार प्रतिवादी पर जय प्राप्त करता है उसी प्रकार बाहुबली ने भरत राजा पर विजय प्राप्त की।
(श्लोक ६०३-६०७) तत्पश्चात् दोनों भाई वद्ध कक्ष हस्ती की तरह बाहुयुद्ध के लिए प्रस्तुत हुए । उसी समय उद्धत समुद्र की भाँति गजन करते हुए बाहुबली को सोने की छड़ीधारक मुख्य छड़ीदार ने कहा-'हे पृथ्वी, वज्र किलक की तरह पर्वतों को पकड़ो और अपनी समस्त शक्ति एकत्र कर तुम स्थिर हो जायो। हे नागराज, चारों ओर के पवन को आकृष्ट कर संहरण करो और पर्वत की तरह दृढ़ होकर पृथ्वी की रक्षा करो। हे महावराह, समुद्र के कर्दम में लोट पूर्व क्लान्ति का अपनोदन करो और सतेज होकर पृथ्वी को अंक में लो । हे कूर्म, अपने वज्र से अंगों को चारों ओर संकुचित कर पीठ को मजबूत बनाओ और पृथ्वी को उठाओ। हे दिग्गज, पहले की तरह प्रमाद में या मद में झाकियाँ मत लो। कारण वज्रसार बाह द्वारा चक्री के साथ युद्ध करने को खड़े हो रहे है।' (श्लोक ६०८-६१५)
पुनः दोनों मल्लों ने ताल ठोंकी । उसका ऐसा शब्द हुआ मानो उसी समय पर्वत पर विद्युत्पात हुआ हो। खेल ही खेल में पदन्यास करते हुए और कुण्डल को कम्पित करते हुए वे दोनों एक दूसरे के सम्मुख अग्रसर होने लगे। उस समय वे ऐसे लग रहे थे मानो वे धातकी खण्ड से आए हुए छोटे मेरु पर्वत हों जिसके दोनों ओर चन्द्र और मूर्य हैं । बलवान हस्ती जिस प्रकार मदोन्मत्त होकर अपने दांतों से एक दूसरे के दाँतों पर प्राघात करता है उसी प्रकार वे भी परस्पर प्राघात करने लगे। एक क्षण में संयुक्त दूसरे क्षण वियुक्त होते वे वीर ऐसे लग रहे थे मानो पवन द्वारा प्ररित दो