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________________ [२६५ सो गए हैं या स्वस्थ हो गए हैं। अन्धकार और प्रकाशशील मेरु पर्वत के दोनों ओर की तरह दोनों तरफ के सैनिक के मध्य विषाद और प्रानन्द दृष्टिगोचर होने लगा। उसी समय बाहुबली बोले'ऐसा मत कहना कि मैं काकतालीय न्याय की तरह जीत गया । अगर ऐसा सोचते हो तो वाग्युद्ध कर लो।' बाहुबली की यह बात सुनकर पददलित सर्प की तरह चक्री क्रोधित होकर बोले-'इस युद्ध में भी तुम्ही विजयी बन जायो।' (श्लोक ५७८-५८९) ईशानेन्द्र के वलीवर्द जिस प्रकार नाद करते हैं सौधर्मेन्द्र के हस्ती गर्जन करते हैं. मेघ अावाज करते हैं उसी प्रकार राजा भरत ने सिंहनाद किया। वह सिंहनाद आकाश के चारों ओर इस प्रकार व्याप्त हो गया जैसे नदी के दोनों तटों पर बाढ़ आने से जल परिव्याप्त हो जाता है । लगा वह नाद युद्ध को देखने आए देवताओं के विमानों को भू-पतित कर रहा है । आकाश से ग्रह नक्षत्र और तारागणों को स्थानच्युत कर रहा है, पर्वत के उच्च शिखर को हिला रहा है और समुद्र जल को उछाल रहा है। उस सिंहनाद को सुनकर अपनी बुद्धि का अहंकार करने वाला छात्र जिस प्रकार गुरु की आज्ञा नहीं मानता उसी प्रकार रथों के अश्व लगाम की उपेक्षा करने लगे। चोर जिस प्रकार सवाणी नहीं सुनते उसी प्रकार हस्ती भी अंकुश को अग्राह्य करने लगे। कफ रोगी जैसे कट पदार्थ नहीं खाता उसी प्रकार घोड लगाम को अस्वीकृत करने लगे। बिट जिस प्रकार लज्जा शर्म नहीं करते उसी प्रकार ऊँट नाक की रस्सो को अग्राह्य करने लगे। भूताविष्ट की तरह खच्चर चाबुक के आघात की अवज्ञा करने लगे । इस प्रकार भरत चक्रवर्ती के सिंहनाद से घबड़ाकर कोई भी स्थिर न रह सका। (श्लोक ५९०-९६) फिर बाहुबली ने सिंहनाद किया। सापों ने वह सिंहनाद सुना । वे सोचने लगे-गरुड़ नीचे उतर रहा है अतः उन्होंने रसातल की ओर गहराई में उतर जाना चाहा । समुद्र के जीव-जन्तु ने उस सिंहनाद को मन्दराचल द्वारा समुद्रमंथन से होने वाली आवाज समझा अतः वे भयभीत हो गए। कुल पर्वत उस शब्द को सुनकर इन्द्र के वज्र के शब्द की भ्रांति से विनाश की आशंका कर बार-बार कांपने लगे। मर्त्यलोक के समस्त मनुष्य उस शब्द को पुष्करावर्त मेघ की विद्युद्ध्वनि समझ कर इधर-उधर लोटने लगे । उस दुःश्रव
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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