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________________ २५२] में आते हैं। हे भगवन्, जो सानन्द अनिमेष नेत्रों से प्रापको देखते हैं उनके लिए परलोक में अनिमेष नेत्र (देवता) होना दुर्लभ नहीं है। हे देव, जिस प्रकार कज्जललिप्त रेशमी वस्त्र की मलिनता दूध से स्वच्छ करने पर चली जाती है उसी प्रकार जीवों के कर्म मल आपके देशना-जल से प्रक्षालित होने पर हो जाते हैं । हे स्वामी, सर्वदा 'ऋषभदेव' इसी नाम का जाप किया जाता है। यह जप समस्त सिद्धियों को आकृष्ट करने वाले मन्त्र के समान है। हे भगवन्, जो पापका भक्ति रूपी कवच धारण कर लेता है उस व्यक्ति को न वज्र विद्ध कर सकता है न त्रिशूल छेदन कर सकता है।' इस भांति भगवान् की स्तुति कर पुलकित देह से प्रभु को नमस्कार कर वे नृपशिरोमणि देवगृह से बाहर पाए । (श्लोक ३७२-३८०) तदुपरान्त उन्होंने स्वर्ण एवं माणिक्ययुक्त कवच धारण किया। वह विजयलक्ष्मी को वरण करने के लिए धारण किए कंचक-सा प्रतीत होता था। उस देदीप्यमान कवच से वे ऐसे शोभित होने लगे जैसे सघन विद्रूम से समुद्र शोभित होता है । फिर उन्होंने पर्वतशिखर पर मेघमण्डल की भांति शोभादायी शिरस्त्राण धारण किया। बड़े-बड़े लौहनिर्मित. तीर भरे दो तूणीर उन्होंने पीठ पर बांधे । वे ऐसे लग रहे थे मानो सर्प भरा पाताल विवर हो । उन्होंने बाए हाथ में धनुष धारण किया। वह ऐसा लग रहा था मानो प्रलयकाल में उत्तोलित यमदण्ड हो। इस भांति प्रस्तुत राजा बाहुबली को स्वस्तिवाचक पुरुष 'पापका कल्याण हो' कहकर आशीर्वाद देने लगे। कुल की वृद्ध स्त्रियां 'दीर्घायु बनो, दीर्घायु बनो' कहने लगीं। वृद्ध कुटुम्बी 'मानन्द में रहो, आनन्द में रहो' बोलने और चारण भाट 'चिरंजीवी रहो' उच्च स्वर में कहने लगे। इस प्रकार सबके शुभकामना वाक्य सुनते हुए महाभाग बाहुबली ने प्रारोहकों का सहारा लेकर हस्तीपृष्ठ पर आरोहण किया जैसे स्वर्गपति मेरु पर्वत पर प्रारोहण करते हैं । (श्लोक ३८१-३८८) उधर पुण्य बुद्धि भरत राजा भी शुभ लक्ष्मी के भण्डार तुल्य अपने देवालय में गए। महां महामना भरत राजा ने भी प्रादिनाथ की प्रतिमा को दिग्विजय के समय लाए हुए पद्मद्रहादि तीर्थों के जल से स्नान करवाया। उत्तम कारीगर जैसे मरिण का मार्जन करते हैं
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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