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________________ [२५१ इस प्रकार इनके कोलाहल से रणवाद्य के शब्द रूप महासागर में ज्वार पा गया। उस समस्त संसार चारों ओर से आते शब्दों से शब्दमय और चमकते अस्त्रों-शस्त्रों से जैसे लौहमय हो ऐसा लगने लगा। मानो अपनी आंखों से देखा हो ऐसे प्राचीन पुरुषों के चरित्र स्मरण करवाने वाले, व्यास की तरह रण निर्वाह की अर्थात् भली भांति किए हुए युद्ध फल का वर्णन करने वाले, नारद ऋषि की तरह सैनिकों को उत्साहित करने के लिए युद्ध में प्रागत शत्रुपक्ष के वीरों की प्रशंसा करने वाले, चारण भाट प्रत्येक रथ और प्रत्येक अश्व के पास पर्व दिनों की तरह जाने लगे और उच्च स्वर में प्रशंसा गीत गाते हुए निर्भय बने रणक्षेत्र में घूमने लगे । (श्लोक ३५९-३६३ ) ___इधर राजा बाहुबली स्नान कर देवपूजा करने के लिए देवालय गए। महापुरुष किसी भी परिस्थिति में घबराते नहीं हैं। देव मन्दिर में जाकर जन्माभिषेक के समय इन्द्र जिस प्रकार प्रभु को स्नान कराते हैं उसी प्रकार बाहुबली ने ऋषभदेव की प्रतिमा को सुगन्धित जल से स्नान कराया। फिर कषायरहित परम श्रद्धा सम्पन्न उन्होंने दिव्य-गन्धयुक्त कषाय वस्त्र से श्रद्धा सहित उस प्रतिमा का मार्जन किया। दिव्य वस्त्रमय कवच की रचना कर रहे हों इस भांति यक्ष कर्दम का लेपन किया और सुगन्ध में देववृक्षों के फलों की माला की सहोदरा हो ऐसे विचित्र पुष्पों की माला पहनाई। सुवर्ण धूपदानी में दिव्य धूप जलाया। उस धुएं से ऐसा लगा मानो वे कमल से पूजा कर रहे हैं । फिर मकर राशि में सूर्य या गया है इस प्रकार उत्तरीय वस्त्र से प्रकाशमान आरती को प्रताप की भांति ग्रहण कर प्रभु की आरती की। अन्ततः करबद्ध होकर अादीश्वर भगवान् को प्रणाम कर भक्ति भाव से इस प्रकार स्तुति करने लगे (श्लोक ३६४-३७१) 'हे सर्वज्ञ, मैं अपना अज्ञान दूर कर आपकी स्तुति करता हूं। कारण, आपके प्रति जो मेरी दुर्वार भक्ति है उसने मुझे वाचाल बना दिया है । हे आदि तीर्थश, आपकी जय हो । आपके चरण-नखों की कान्ति संसार रूपी शत्रु द्वारा तप्त प्राणी के लिए वज्र निर्मित पिंजरे के तुल्य है। हे देव, आपके चरण-कमलों को देखने के लिए राजहंस की तरह जो सब प्राणी दूर से आते हैं वे धन्य है। शीतार्त व्यक्ति जिस प्रकार सूर्य की शरण लेता है उसी प्रकार इस भयंकर संसार के दुःख से पीड़ित विवेकी पुरुष सर्वदा एक अापकी ही शरण
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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