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२४८] जय करते हैं उसी प्रकार दुर्जय किरातों को तुमने अपने पराक्रम से जय किया है; किन्तु उनमें एक भी ऐसा नहीं था जिसकी तक्षशिला के राजा बाहुबली के सामान्य पदातिक से तुलना की जा सके । बाहुबली का ज्येष्ठ पुत्र सोमथश अकेला ही हवा जैसे रूई को उड़ा देने में समर्थ है उसी प्रकार समस्त सैन्य को दशों दिशाओं में उड़ा देने में समर्थ है। उसका कनिष्ठ पुत्र सिंहरथ उम्र में छोटा है किन्तु पराक्रम में अकनिष्ठ । वह शत्रु सेना के मध्य दावानल-सा है। अधिक क्या कहूं उसके अन्य पुत्र और पौत्र प्रत्येक-प्रत्येक एकएक अक्षौहिणी सेना के लिए मल्ल की तरह हैं और यमराज के हृदय को भयभीत बना देने वाले हैं। उसके स्वामिभक्त सामन्तगण उसके प्रतिबिम्ब ही हों ऐसे उसके ही समान बलशाली हैं। अन्यों के सैन्यदल में तो अग्रणी एक महाबलवान रहता है ; किन्तु उसकी सेना में तो सभी महाबलवान हैं । युद्ध में महाबली बाहुबली तो दूर उसका एक सैन्य-व्यूह भी अभेद्य है। इसलिए वर्षाऋतु में मेघ के साथ जैसे पूर्व दिशा की हवा प्रवाहित होती है उसी प्रकार युद्ध में जाने वाले सुषेण के साथ तुम लोग जाओ। (श्लोक ३०४-३१७)
अपने स्वामी के अमृत वचनों से मानों पूर्ण बन गए हों इस प्रकार उनके शरीर पुलकावली से व्याप्त हो गए अर्थात् उनके शरीर रोमांचित हो गए। महाराज ने उन्हें विदा दी। वे इस प्रकार अपने स्कन्धावार की ओर गए जैसे विरोधी वीरों की जयलक्ष्मी को पाने के लिए स्वयंवर मण्डप में गए हों। दोनों ऋषभ पूत्रों के कृपारूप समुद्र से पार होने के लिए अर्थात् कृपारूपो ऋण परिशोध करने की इच्छा वाले उभय पक्ष के वीरश्रेष्ठ उस युद्ध के लिए प्रस्तुत हो गए। वे अपने-अपने कृपारण, धनुष, तूणीर, गदा,
आदि को देवता की तरह पूजा करने लगे। उत्साह से नृत्य करते हुए अपने चित्त के साथ ताल दे रहे हों इस प्रकार वे महावीर
आयुधों के सम्मुख जोर-जोर से वाद्य बजाने लगे। फिर जैसे उनके निर्मल यश हों ऐसे नवीन और सुगन्धित उबटन अपने शरीर में लेपन करने लगे । मस्तक पर बँधे वीरपट्ट की तरह ही कस्तूरी बिन्दु अपने-अपने ललाट पर अंकित करने लगे। दोनों दलों में युद्ध की बातचीत हो रही थी इसलिए शस्त्र सम्बन्धी जागरणकारी वीर सैनिकों से मानो डर गई हों ऐसी नींद नहीं आई। सुबह जो युद्ध होगा उसमें वीरत्व दिखाने के उत्साही वीर योद्धानों को वह तीन