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________________ [२४७ सेना में रणवाद्य बजाने वाले भी वीराभिमानी थे । चन्द्रतुल्य कांतिसम्पन्न माण्डलिक राजाओं के छत्र से प्राकाश श्वेत कमल पूर्ण-सा लगता था। प्रत्येक पराक्रमी राजा को देखते हुए उन्हें स्व बाहु रूप समझते हुए वे अग्रसर हो रहे थे। पथ पर चलते सैनिकों से मानो बाहुबली पृथ्वी को ध्वंस करने और जय वाद्य से आकाश को फोड़ने लगे। यद्यपि देश की सीमा दूर थी फिर भी वे उसी मुहूर्त में वहां जा पहुंचे। कारण, युद्ध के लिए उत्सुक वायु की तरह वेगवान होता है । बाहुबली ने गङ्गा तट पर ऐसी जगह छावनी डाली जो कि भरत की छावनी से न अधिक दूर थी न अधिक निकट। (श्लोक २८५-२९८) सुबह चारण और भाटों ने अंतिथि की तरह उन दोनों ऋषभ-पुत्रों को युद्ध के लिए आमन्त्रित किया। रात के समय बाहुबली ने समस्त राजाओं के परामर्श से सिंह-से शक्तिशाली अपने पुत्र सिंहरथ को सेनापति के पद पर नियुक्त किया और मदमस्त हस्ती की तरह उसके मस्तक पर मानो प्रकाशमान प्रताप हो ऐसा देदीप्य. मान एक स्वर्ण रण-पट पारोपित किया। वह राजा को प्रणाम कर युद्ध विषयक उपदेश प्राप्त कर मानो पृथ्वी ही प्राप्त हो गई हो इस प्रकार आनन्दित बना अपने स्कन्धावार को लौट गया। महाराज बाहुबली ने अन्य राजाओं को भी युद्ध की प्राज्ञा देकर विदा किया। वे स्वयं ही युद्ध की इच्छा रखते थे फिर भी स्वामी की आज्ञा-सत्कारपूर्वक स्वीकार की। (श्लोक २९९-३०३) उधर महाराज भरत ने भी रात को ही राजकुमार, राजा और सामन्तों की सम्मति लेकर प्राचार्य की तरह सुषेण को रणदीक्षा दी अर्थात् सेनापति पद पर नियुक्त किया। सिद्धि मन्त्र की तरह स्वामी की प्राज्ञा स्वीकार कर चक्रवाक की तरह प्रभात की प्रतीक्षा करते हुए सुषेण निज स्कन्धावार को लौट गया। कुमार एवं मुकुटधारी समस्त राजाओं और सामन्तों को बुलाकर भरत ने आज्ञा दी-'वीरो, मेरे छोटे भाई के साथ जो युद्ध होगा उसमें जिस प्रकार तुम लोग मेरी आज्ञापालन करते हो उसी प्रकार सतर्कतापूर्वक सेनापति सुषेण की आज्ञा का पालन करना। हे पराक्रमी वीरगण, महावत जैसे हाथी को वश में करता है उसी प्रकार तुम लोगों ने भी अनेक पराक्रमी और दुर्मद राजाओं को वश में किया है और वैताढय पर्वत पार कर जैसे देवता लोग असुरों को
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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