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________________ २४६] उन्हें जीतने की इच्छा करने वाले ये राजा अंगुली से मेरु को धारण करने की इच्छा कर रहे हैं । इस युद्ध में यदि छोटे भाई ने बड़े भाई पर या बड़े भाई ने छोटे पर विजय प्राप्त की तो दोनों ही अवस्था में महाराज अपयश के भागी होंगे ।' ( श्लोक २६२ - २७८ ) सैन्य की पदरज ने मानो विन्ध्य पर्वत हो इस प्रकार चारों ओर अन्धकार व्याप्त करते हुए, अश्वों की हिनहिनाहट एवं हस्तियों की चिंघाड़, रथों की चीं-चीं और पैदल सैनिकों की खटखट शब्द से प्रानक नामक वाद्य की तरह दिक्समूह को गुंजित करते हुए, ग्रीष्मकालीन सूर्य की तरह पथ पाश्वस्थ सरिताओं को शुष्क करते हुए, प्रबल अन्धड़ की तरह निकटस्थ वृक्षों को उखाड़ते हुए, सोने के ध्वज - पटों से प्रकाश को बलाकामय करते हुए, सैन्य भार से प्रपीड़ित पृथ्वी को हाथी के मद-जल से शान्त करते हुए और प्रतिदिन चक्र के अनुरूप चलते हुए महाराज सूर्य जिस प्रकार अन्य राशि में जाता है उसी प्रकार बहली देश में जा उपस्थित हुए और सीमान्त पर छावनी डालकर समुद्र की भांति मर्यादा की रक्षा करते हुए वहां स्थित हो गए । (श्लोक २७९-२८४) उसी समय सुनन्दा पुत्र बाहुबली राजनीति रूप गृह स्तम्भ की तरह गुप्तचरों द्वारा चक्री के आगमन की सूचना से अवगत हुए । उन्होंने भी प्रयाणकालीन भेरी बजवाई । उसकी ध्वनि स्वर्ग भेरी-सी प्रतीत हुई । प्रस्थान मंगल कर मानो मूर्तिमान कल्याण हों इस प्रकार गजेन्द्र पर जैसे स्वयं ही उत्साह हो इस प्रकार रोहित महाबलवान, महाउत्साही समान कार्य में रत अन्य के लिए अभेद्य मानो बाहुबली के ही अंश हों ऐसे राजकुमार, प्रधान और वीर पुरुष परिवृत्त बाहुबली देवताओं द्वारा परिवृत्त इन्द्र की तरह सुशोभित हुए। जैसे उनके मन में ही निवास करते हों ऐसे लक्ष- लक्ष योद्धा कोई हस्ती पृष्ठ पर, कोई अश्व पर कोई रथ पर, कोई पैदल चल कर उसी समय एक साथ बाहर निकले । अपने अमोघ अस्त्र से बलवान पुरुषों ने मानो एक वीरमय पृथ्वी की रचना की हो इस प्रकार अचल निश्चयकारी बाहुबली ने प्रस्थान किया । प्रत्येक चाहते थे कि विजय में कोई उनका हिस्सेदार न हो । अतः उनके सैनिक परस्पर बोल रहे थे - 'मैं अकेला ही समस्त शत्रुत्रों को जीत सकूँगा । रोहिणाचल के समस्त कंकर ही मरिण होते हैं इस भांति
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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