SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६] अतः सत्पुरुषों को सदैव सतर्क होकर अभयदान की इच्छा रखनी चाहिए | अभयदान देने से मनुष्य आगामी जन्म में मनोहर देह, दीर्घ आयु, स्वास्थ्य, कांति, श्री और शक्ति प्राप्त करता है । ( श्लोक १६९-७४ ) धर्मोपग्रह दान पाँच प्रकार का होता है : दाता (जो दान देता है) शुद्ध हो, ग्राहक (जो दान ग्रहरण करता है) शुद्ध हो. देववस्तु (जो दान दी जाती है) शुद्ध हो, काल ( दान देने का समय) शुद्ध हो, भाव (दान देने के समय का मनोभाव ) शुद्ध हो । (श्लोक १७५) 'वही दाता शुद्ध होता है जिसका धन न्यायोपार्जित है, जिसकी बुद्धि उत्तम है, जो किसी प्रत्याशा से दान नहीं देता, जो ज्ञानी है ( क्यों दान दे रहा है) और देने के पश्चात् जो पश्चात्ताप नहीं करता । जो मन में सोचता है : मैं ऐसा चित्त ( जिसमें दान देने की इच्छा उत्पन्न हुई है), ऐसा चित्त (न्यायोपार्जित धन), ऐसा पात्र (दान ग्रहण करने वाला भी शुद्ध है) पाकर धन्य हो गया हूँ । ( श्लोक १७६ - १७७ ) 'दान ग्रहण करने वाला वही शुद्ध है जो पाप रहित है, तीन गौरव स्वाद (स्वाद लोलुपता, ऐश्वर्य लोलुपता और सुखलोलुपता ) और सुखलोलुपता) रहित है, तीन गुप्तियों (संयमित मन, संयमित वचन और संयमित काया) का धारक है, पाँच समितियों (जो चलने फिरने, बोलने एवं आहार लेने के समय तथा किसी वस्तु को उठाने एवं रखने के समय और शौचादि के समय जीव हत्या से सावधान रहता है) का पालन करने वाला है । वह राग-द्वेष से रहित होता है, नगर, ग्राम, स्थान, उपकरण और शरीर से ममत्व नहीं रखता है, अठ्ठारह हजार शीलांगों को धारण करने वाला और रत्न त्रय (सम्यक् ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र ) का अधिकारी होता है । वह धीर होता है । लोहा और सोना को समदृष्टि से देखता है, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान में निरत रहता है, जितेन्द्रिय और कुक्षि सम्बल ( श्रावश्यकतानुसार भोजनकारी ) होता है । वह निरन्तर छोटी-बड़ी तपस्या में निरत रहता है, सत्रह प्रकार के संयम अखण्ड रूप से पालन करता है, अठारह प्रकार के ब्रह्मचर्य का व्रती होता है । ऐसे शुद्धदान ग्रहणकारी को दान देना 'ग्राहक शुद्ध दान या सुपात्र दान कहलाता है । ( श्लोक १७८ - १८२)
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy