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क्षेत्र में ले जाकर उसे पांच प्रकार की गतियों से चलाकर युद्धोपयोगी कर उसका श्रम दूर करने लगा। कोई मानो प्रभु की तेजोमय मूर्ति-सी अपने खड्ग आदि प्रायुधों को शान पर चढ़ाकर और तीक्ष्ण करने लगा। कोई युद्ध-यात्रा के समय कवचादि वहन करने के लिए ध्वनिकारी वाद्ययन्त्र-से जंगली ऊँट पकड़-पकड़ कर लाने लगा। तार्किक पुरुष जिस प्रकार सिद्धान्त को दृढ़ करता है उसी प्रकार कोई अपना तीर, कोई तूणीर, कोई शिरस्त्राण, कोई कवच
आदि को विशेष भाव से दृढ़ और मजबूत बनाने लगा। कोई गन्धर्व नगर से पड़े हुए तम्बू और कनातों को फैलाने लगा । मानो एक-दूसरे से स्पर्धा करते हों ऐसे बाहुबली के प्रति प्रेमवश वे नागरिक युद्ध के लिए इस प्रकार तैयार होने लगे । राजा की भक्तिवश युद्ध में जाने को प्रस्तुत किसी व्यक्ति को यदि उसका कोई प्रात्मीय निवारित करता तो वह उस पर इस प्रकार ऋद्ध हो जाता मानो वह उसका कोई नहीं । अनुरागवश राजा के मंगल के लिए अपना प्राण देने को प्रस्तुत लोगों के ऐसे उद्यम राह में चलते हुए सुवेग ने देखे ।
(श्लोक १७४-१८७) युद्ध की बात सुनकर और लोगों को प्रस्तुत होते देख बाहुबली के भक्त पार्वत्य राजागण भी उनके निकट पाए । गोपों की पुकार सुनकर गायें जिस प्रकार दौड़ी पाती हैं उसी प्रकार उक्त राजाओं की शृङ्ग ध्वनि सुनकर हजार-हजार किरात निकुञ्जों से निकल पड़े। इन सभी बलवान किरातों में कोई बाघ की पूछ की चर्म से, कोई मयूर पुच्छ से, कोई लता से, अपने केशों को शीघ्रतापूर्वक बांधने लगा । कोई सर्प चर्म से, कोई वृक्ष छाल से, कोई गायों के तन्तु से अपने शरीर में पहने मृगचर्म को सुदृढ़ करने लगा। बन्दरों की तरह हाथों में प्रस्तरखण्ड और धनुष लिए प्रभु-भक्त श्वानों की तरह वे उछलते-उछलते अपने-अपने स्वामियों के समीप पहुंच कर एकत्र होने लगे । वे परस्पर कहने लगे-'हम भरत की सेना को समूल नष्ट कर महाराज बाहुबली के उपकार का अनुदान देंगे।'
__(श्लोक १८८-१९३) उनके इस प्रकार क्रोध भरे कार्य-कलापों को देखकर सुवेग विवेक बुद्धि से सोचने लगा-बाहुबली के अधीनस्थ उनके देश के मनुष्य युद्ध के लिए इस भांति शीघ्रतापूर्वक तैयार हो रहे हैं मानो