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[२३५ 'छिद्र भी जल बाँध को विनष्ट कर सकता है । आप यह मत सोचिए कि मैं इतने दिनों तक नहीं गया तो अब कैसे जाऊँ ? आप चलिए, क्योंकि सुस्वामी त्रुटि को ग्रहण नहीं करते बल्कि । उसकी उपेक्षा करते हैं। आकाश में सूर्योदय होते ही जैसे कुहासा नष्ट हो जाता है उसी प्रकार वहां जाते ही निन्दकों के मनोरथ नष्ट हो जायेंगे। पूर्णिमा का चन्द्र जिस प्रकार सूर्य से तेज ग्रहण करता है उसी भाँति उनसे मिलने पर आपके तेज की भी अभिवृद्धि होगी। स्वामी से आचरणकारी अनेक बलवान पुरुष अपना सेव्य-भाव परित्याग कर महाराज की सेवा कर रहे हैं। जिस प्रकार देवताओं के लिए इन्द्र सेव्य है उसी प्रकार कृपा करने में एवं दण्ड देने में चक्रवर्ती समस्त राजारों के सेव्य होते हैं। आप यदि केवल चक्रवर्ती के रूप में ही उनकी सेवा करेंगे तो भी आपका भ्रातृप्रेम ही प्रकाशित होगा । श्राप यदि यह सोचें कि ये चक्रवर्ती तो मेरे भाई हैं अतः वहां न जाऊँ तो वह भी अनुचित होगा। कारण, आदेश देने का मुख्य उत्स राजा ही होता है। वह कौटुम्बिकों से भी अपनी प्राज्ञा का पालन करवा सकता है। चुम्बक जिस प्रकार लौह को आकृष्ट करता है उसी प्रकार उनके उत्कृष्ट तेज से प्राकृष्ट होकर देव, दानव और मानव, सभी भरतपति के निकट पाते हैं। जबकि इन्द्र भी महाराज भरत को अपना अर्धासन प्रदान करते हैं; तब उनके सुहृद होकर क्यों नहीं उनके निकट जाकर उन्हें अपने अनुकल बना लेते हैं ? यदि आप वीरत्व के अभिमान में महाराज का अपमान करते हैं तब तो सैन्य सहित आप उनके पराक्रम रूपी समुद्र में एक मुष्ठि घुन लगे धान्य के आटे की तरह विलीन हो जाएंगे। चलमान पर्वत-से उनके ऐरावत तुल्य चौरासी लाख हस्तियों का वेग सहन करने में कौन समर्थ है ? उनके प्रलयकालीन समुद्र के कल्लोल से समस्त पृथ्वी को प्लावित करने में समर्थ चौरासी लाख अश्व और चौरासी लाख रथ को निवारण करने में कौन समर्थ हैं ? छियानवे करोड़ उनके पदातिक सिंह की भांति किसके हृदय को भयभीत करने में समर्थ नहीं हैं ? उनके एकमात्र सेनापति सुषेण ही यदि हाथ में दण्ड लिए पाएं तो देव और दानव कोई भी उनके सम्मुखीन नहीं हो सकता । सूर्य के सम्मुख जिस प्रकार अन्धकार का कोई महत्त्व नहीं उसी प्रकार चक्रधारी भरत चक्रवर्ती के सम्मुख तीन लोक नगण्य है । इस लिए हे बाहुबली, तेज और उम्र दोनों में आप से बड़े महाराज