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________________ [२२३ धारण कर रखे थे फिर भी व्यवहार रक्षा के लिए अन्य अलङ्कार स्वीकार किए। उस समय रूप सम्पत्ति से सुशोभित सुन्दरी के सम्मुख स्त्रीरत्न सुभद्रा दासी-सी लगने लगी। शील सम्पन्ना वह सुन्दरी बाला संचरमान कल्पलता-सी याचकों को प्रार्थित ऐश्वर्य दान करने लगी। हंसिनी जिस प्रकार कमलिनी पर बैठती है उसी प्रकार कर्पू ररज-से श्वेत वस्त्रों से सुशोभित होकर वह एक शिविका में बैठ गई। हस्ती, अश्वारोही, पदातिक और रथों से पृथ्वी को प्रावृत कर महाराज भरत मरुदेवी की तरह सुन्दरी के पीछे-पीछे चलने लगे। उनके दोनों ओर चवर डुलाए जा रहे थे। मस्तक पर श्वेत छत्र शोभा पा रहा था । चारण और भाट उनके संयम की दृढ़ता की प्रशंसा कर रहे थे। भ्रातृ-वधुएँ दीक्षा उत्सव का मांगलिक गीत गा रही थीं एवं उत्तम स्त्रियां पद-पद पर निछावर कर रही थीं। इस प्रकार साथ चलने वाले अनेक पूर्ण पात्रों से शोभायमान सुन्दरी प्रभु चरणों से पवित्र अष्टापद पर्वत की अधित्यका में पहुंच गई । चन्द्र सहित उदयाचल की भांति प्रभु सहित उस पर्वत को देखकर भरत और सुन्दरी आनन्दित हुए । स्वर्ग और मोक्ष जाने के सोपानरूप विशाल शिलायुक्त उस पर्वत पर दोनों ने प्रारोहण किया और संसार भय से भीत जनों के शरणतुल्य चार द्वार विशिष्ट और क्षुद्रकृत जम्बूद्वीप के प्राकारों के से समवसरण के निकट गए। उन्होंने उत्तर द्वार से विधिवत् समवसरण में प्रवेश किया। फिर हर्ष और विनय से स्व-शरीर को उच्छ्वसित और संकुचित कर प्रभु की तीन प्रदक्षिणा दीं। पंचांगों से भूमि स्पर्श कर प्रणाम किया। उस समय ऐसा लग रहा था कि वे भूतलगत रत्न या प्रभु बिम्ब को देखने का प्रयास कर रहे हैं। फिर चक्रवर्ती भक्तिपूत वाणी से प्रथम धर्म चक्रवर्ती की स्तुति करने लगे : (श्लोक ७५५-७७७) ___ 'हे प्रभो, असत् कथनकारी लोग अन्य की स्तुति कर सकते हैं; किन्तु मैं आपमें जो गुण हैं उनका वर्णन करने में असमर्थ हूं। अत: मैं आपकी स्तुति कैसे करूं? फिर भी दरिद्र जब लक्ष्मीवान् के पास जाता है तब कुछ न कुछ उपहार अवश्य देता है। हे जगन्नाथ, मैं भी इसी भाव से आपकी स्तुति करूंगा। हे प्रभो, सन्निपात रोग असाध्य है; किन्तु आपकी अमृत रस तुल्य औषधरूपी वाणी महामोहरूपी सन्निपात ज्वर को दूर करने में समर्थ है ।हे नाथ,
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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