SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२२१ वर्षों से जिन्होंने महाराज को नहीं देखा ऐसे उनके दर्शनों को उत्सुक समस्त आत्मियों को उनके सम्मुख उपस्थित किया। उनमें सबसे प्रथम वाहुबली की सहजात, गुणों में सुन्दर सुन्दरी को उपस्थित किया गया। वह सुन्दरी ग्रीष्माक्रान्त नदी की तरह दुर्बल लग रही थी। हिम सम्पर्क से जैसे कमलिनी मलिन हो जाती है उसी प्रकार वह मलिन हो गई थी। हिम ऋतु के चन्द्रमा की कला की तरह उसका रूप लावण्य नष्ट हो गया था व शुष्कपत्र कदली की तरह उसके कपोल पीले और कृश दिख रहे थे। सुन्दरी की अवस्था देखकर महाराज क्रोध से भरकर अपने अधिकारी पुरुषों से बोले-'क्या हमारे घर पर पर्याप्त खाद्य नहीं है ? क्या लवरण समुद्र का लवण शेष हो गया था या पुष्टिकरा खाद्य प्रस्तुतकारक सूपकार नहीं है या वे स्वेच्छाचारी और कार्यों में शिथिल हो गए हैं ? द्राक्षा एवं खजुरादि शुष्क फल भी क्या हमारे यहां नहीं हैं ? सुवर्ण पर्वतों पर क्या सोना नहीं है ? उद्यान के वृक्ष क्या अब फल नहीं देते ? नन्दन वन के वृक्षों में क्या अब फल नहीं लगते ?.घट से स्तन विशिष्ट गायें क्या अब दूध नहीं नहीं देती ? कामधेनु के स्तनप्रवाह क्या शुष्क हो गए हैं अथवा समस्त वस्तुओं के रहते हुए भी रोगाक्रान्त होने के कारण सुन्दरी ने आहार परित्याग कर दिया ? इसके शरीर में क्या सौन्दर्य नाशकारी रोग हगा है ? या उसे दूर करने में सक्षम वैद्यगरण अब कहने भर को रह गए हैं ? हमारे घर की औषधियां यदि शेष भी हो गई तो क्या हिमाद्रि पर्वत भो औषधियों से रहित हो गया ? हे अधिकारीगण, दरिद्र कन्या की तरह सुन्दरी को दुर्बल देखकर मेरे मन में अत्यन्त कष्ट हो रहा है। तुम लोगों ने शत्रु की तरह मुझे प्रतारित किया है।' (श्लोक ७३३-७४३) भरतपति की ऐसी क्रोध भरी बातें सुनकर अधिकारीगण उन्हें प्रणाम कर बोले--'महाराज, स्वर्गपति की तरह अापके घर में सभी वस्तुएं वर्तमान हैं; किन्तु जिस दिन आप दिग्विजय के लिए निकले उसी दिन से सुन्दरी प्रायंबिल तपस्या कर रही हैं। केवल प्राण धारण के लिए सामान्य-सा आहार लेती हैं। आपने इन्हें दीक्षा लेने से रोक दिया था इसी से ये भाव दीक्षा लेकर समय व्यतीत कर रही हैं।' (श्लोक ७४४-७४६)
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy