SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२१९ पहनाए । वे दोनों चन्द्रमा के निकटस्थ चित्रा और स्वाति नक्षत्र से लगने लगे । सूत्र में बिना पिरोया हुआ हार रूपमें एक ही मुक्ता उत्पन्न हो गया हो ऐसी मुक्तामाला उनके गले में पहनायो । मानो समस्त अलंकारों के हार रूप राजा का युवराज हो ऐसा सुन्दर अर्द्धहार उनके वक्ष पर सुशोभित किया। उज्ज्जल और कान्ति-शोभित दो देवदूष्य वस्त्र राजा को पहनाए । उधर देखकर लगता मानो वह उज्ज्वल अभ्रक सम्पुट हो। एक सुन्दर पुष्पहार उनके कण्ठ में लटकाया जो लक्ष्मी के वक्षःस्थल रूपी मन्दिर को अर्गला-सा लगता था। इस प्रकार कल्पवृक्ष-सा अमूल्य वस्त्र और मारिणक्य के अलंकारों को धारण कर महाराज ने स्वर्गखण्ड-से उस मण्डप को मण्डित किया। तदुपरान्त पुरुषाग्रणी एवं महान् बुद्धिमान् महाराज ने छड़ीदारों द्वारा राज्य पुरुषों को बुलवाकर आदेश दिया – 'हे अधिकारी पुरुष, आप लोग हस्तीपृष्ठ पर आरोहण कर समस्त नगर में घोषणा करें कि बारह वर्षों के लिए विनीता नगरी को भूमिकर, प्रवेश शुल्क, दण्ड, कुदण्ड और भय से मुक्त कर अानन्दमय किया जाता है।' अधिकारीगण ने उसी मुहूर्त में वाद्यध्वनि कर समस्त राजाज्ञा प्रचारित कर दी। कहा भी गया है-कार्य सफल करने के लिए चक्रवर्ती का आदेश पन्द्रह संख्यक रत्न के समान है। (श्लोक ६८३-७०१) तत्पश्चात् महाराज सिंहासन से उठे । साथ ही साथ, मानो उनके प्रतिबिम्ब ही हों, अन्य भी उठकर खड़े हो गए। जैसे पर्वत शिखर से उतरते हों उसी प्रकार भरतेश्वर स्नानपीठ से उसी पथ से उतरे जिस पथ से चढ़े थे। तदुपरान्त मानो उनका असह्य प्रताप ही हो ऐसे हाथी पर चढ़कर चक्री अपने प्रासाद को लौट गए। वहां जाकर उत्तम जल से स्नान कर अष्टम तप का पारना किया । इसी प्रकार बारह वर्ष अभिषेकोत्सव में व्यतीत हो गए। तब चक्रवर्ती ने स्नान, पूजा, प्रायश्चित और कौतुक-मंगल कर बाहरी सभा स्थान में पाकर सोलह हजार प्रात्मरक्षक देवताओं का सत्कार कर विदा किया। फिर विमानवासी इन्द्र की तरह महाराज स्वप्रासाद में अवस्थान करते हुए विषयसुख भोग करने लगे। (श्लोक ७०२-७०८) महाराज की आयुधशाला में चक्र, खड्ग, छत्र और दण्ड-से चार एकेन्द्रिय रत्न थे। रोहिणाचल के माणिक्य की भांति उनके
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy