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________________ २१८] इन्द्र से बैठे थे महाराज ने पौषधशाला में जाकर अष्टम तप किया । कारण तपस्या द्वारा प्राप्त राज्य तपस्या द्वारा ही सुखमय होता है । अष्टम तप पूर्ण होने पर वे अन्तःपुर और परिवार सहित हस्तीपृष्ठ पर आरूढ होकर उस दिव्य मण्डप में गए । फिर अन्तःपुर और हजार नाटक सहित वे उत्तम प्रकार के निर्मित उस अभिषेक मण्डप में प्रविष्ट हुए । वहां वे सिंहयुक्त स्नानपीठ पर बैठे । देखकर लगा जैसे हस्ती ने पर्वत शिखर पर आरोहण किया हो । कारण ही मानो वे पूर्व दिशा की ओर मुख कर हों इस प्रकार बत्तीस हजार राजा उत्तर दिशा की ओर स्नानपीठ पर आरोहण कर चक्रवर्ती से दूर जमीन पर भद्रासन पर बैठ गए । वे विनयी राजा इस प्रकार युक्त कर बैठे जैसे देवतागण इन्द्र के सम्मुख बैठते हैं । सेनापति, सह-सेनापति, वर्द्धकि, पुरोहित, श्रेष्ठी आदि दाहिनी ओर की सीढ़ियों से स्नानपीठ पर चढ़े और स्वयोग्य आसनों पर इस प्रकार करबद्ध होकर बैठ गए मानो वे चक्री कुछ निवेदन करेंगे । ( श्लोक ६७३ - ६८३) फिर आदिदेव का अभिषेक करने के लिए जिस प्रकार इन्द्र आए थे उसी प्रकार नरदेव भरत का अभिषेक करने के लिए इन्द्र के अभियोगिक देवगरण आए । जल से पूर्ण होने के कारण मेघ से, मुख भाग में कमल रहने के कारण चक्रवाक पक्षी से, भीतर से बाहर जल आने के समय शब्द होने के कारण वाद्य ध्वनि को ग्रनुसरण करने वाली शब्दावली - से, स्वाभाविक रत्नकलशों से अभियोगिक देवगण महाराज भरत का अभिषेक करने लगे । तदुपरान्त स्वनेत्र हों ऐसे जलपूर्ण ३२ हजार राजात्रों ने शुभ मुहूर्त में उनका अभिषेक किया और अपने ललाट पर कमल - कलियों से हाथों को युक्त कर 'आपकी जय हो, आपकी जय हो' बोलकर चक्री को साधुवाद देने लगे । फिर श्रेष्ठी प्रादियों ने जल से उनका अभिषेक कर उसी जल के समान उज्ज्वल वारणी से उनकी स्तुति करने लगे । तत्पश्चात् वे पवित्र लोमयुक्त कोमल गन्ध कषायी वस्त्रों से चक्री की देह को माणिक्य की भांति पोंछने लगे । गेरू जिस प्रकार स्वर्ण को उज्ज्वल करती है उसी प्रकार महाराज की देह को उज्ज्वल करने के लिए गोशीर्ष चन्दन का लेपन करने लगे । देवों ने इन्द्र द्वारा प्रदत्त ऋषभदेव के मुकुट को अभिषिक्त एवं राजानों में अग्रणी चक्रवर्ती के मस्तक पर रखा । उनके दोनों कानों में रत्न- कुण्डल प्रीति के 1 । थोड़े से सीढ़ी से
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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