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________________ २०० अग्नि की भाँति ऐसे जाज्वल्यमान हो गए कि उनकी और देखा नहीं जा सका। राक्षसपति की भांति वे विपक्ष की समस्त सैन्य को ग्रास करने के लिए उद्यत हो गए । देह में उत्पन्न उत्साह के कारण सुवर्ण कवन वे बड़ी कठिनता से धारण कर सके और इस भांति वे बैठे कि जैसे कोई दूसरी ही त्वचा हो । कवच धारण कर साक्षात् जय रूपी सुषेण सेनापति कमलापीड़ घोड़े पर सवार हुए। उस घोड़े की उच्चता ८० अंगुल और प्रशस्तता ९९ अंगुल और दैर्घ १०८ अंगुल था । उसका माथा हमेशा ३२ अगुल से ऊपर रहता था। उसके बाहु अर्थात् सामने के पैर ४ अंगुल, जंघा १६ अंगुल और घुटनों तक ४ अंगुल था और उसका खुर भी था ४ अंगुल का । उसका मध्य भाग गोलाकार और आनत था। पीठ थी विशाल, आनत और ग्रानन्ददायक । उसके रोए रेशम के सूते की तरह कोमल थे और देह पर श्रेष्ठ द्वादशावर्त था। उस घोड़े के समस्त लक्षण अच्छे थे और कान्ति थी यौवन प्राप्त शुक पक्षी के पंखों-सी मरकत । उसके शरीर ने कभी चाबुक का स्पर्श नहीं किया। कारण, वह पारोही की इच्छानुसार चलता था । रत्न और स्वर्णमय वल्गा में मानो लक्ष्मी ने ही अपने दोनों हाथ उसके गले को अर्पण किए हैं ऐसा लगता था । उस पर लटकते स्वर्ण घुघरू छम-छम आवाज कर रहे थे । इससे लगता कि मधुर ध्वनिकारी मधुकर सेवित कमल माल से वह पूजित हा है। उसका मुख ऐसा लगता था जैसे पांच रंगों की मणियों से जड़ित स्वर्णालंकार की किरण द्वारा पताका चिह्न में अंकित हुआ है। मंगल तारिका में मण्डित आकाश की भांति सुवर्ण कमल उसके ललाट देश पर तिलक रूप में सुशोभित थे। चामर के अलंकार से शोभित उसे देखकर लगता मानो उसने द्वितीय कर्ण धारण किए हैं । वह चक्रवर्ती के पुण्य प्रभाव से आकृष्ट सूर्य के उच्चैःश्रवा अश्व की तरह सुशोभित था। उसके पैर वक्र-भाव से पड़ते जिससे लगता मानो वह क्रीड़ा कर रहा हो । उसमें एक लक्ष योजन अतिक्रम करने की शक्ति थी। उससे वह साक्षात् गरुड़ व पवन-सा लगता था। वह कर्दम जल, पत्थर, कंकर और धूल भरा विषम स्थान एवं पहाड़ गुफा आदि दुर्गम स्थान को अतिक्रम करने की शक्ति रखता था। चलने के समय उसके पैर जमीन पर बहुत कम पड़ते थे जिससे लगता मानो वह आकाश में उड़ रहा है। वह बुद्धिवान् और नम्र था। पांच प्रकार की गति से उसने श्रम को जय कर लिया था।
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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