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________________ १८६] परिवार, मैं स्वयं और जो कुछ भी है सब प्रापका है । आप मुझे अपना सेवक मानकर प्राज्ञा दीजिए ।' ( श्लोक १३९ - १४८ ) ऐसा कहकर उसने वह तीर, तीर्थ का जल, मुकुट औौर कुण्डल उपहार में दिए । राजा भरत ने उन्हें ग्रहरणकर मगधपति का सत्कार किया । कहा भी गया है, महान् व्यक्ति सेवा में तत्पर मनुष्य पर कृपा ही करते हैं । फिर इन्द्र जैसे अमरावती जाता है उसी प्रकार से चक्रवर्ती भरत रथ को घुमाकर जिस पथ से प्राए थे उसी पथ से होते हुए छावनी लौट गए। रथ से उतर कर स्नान कर परिवार सहित उन्होंने अष्टम तप का पारना किया । तदुपरान्त मगधपति पर विजय प्राप्ति के लिए चक्रवर्ती भरत ने चक्र प्राप्ति के उपलक्ष्य में जैसे प्रष्टाह्निका उत्सव किया था उसी प्रकार का उत्सव खूब धूमधाम से किया । उत्सव समाप्ति पर वह तीक्ष्ण चक्र मानो सूर्य रथ से ही निकला हो इस प्रकार तेजी से प्रकाश पथ पर चला और दक्षिण दिशा में वरदाम तीर्थ की ओर प्रग्रसर हुग्रा । व्याकरण में प्र-प्रादि उपसर्ग जैसे धातु के पीछे-पीछे चलते हैं चक्रवर्ती भरत भी उसी प्रकार चक्र के पीछे-पीछे चले । ( श्लोक १४९ - १५५) 1 एक योजन पथ प्रतिदिन अतिक्रम कर चक्रवर्ती भरत दक्षिण समुद्र तट पर इस प्रकार पहुंचे जैसे राजहंस मानसरोवर पर पहुँचता है । इलायची, लवंग, चिरोंजी और कक्कोल वृक्ष बहुल दक्षिण समुद्र के तट पर सैनिकों के स्कन्धावार स्थापित किए गए। महाराज की आज्ञा से वर्द्ध किरत्न ने पूर्व समुद्र तट की भाँति यहां भी निवास स्थान और पौषधशाला का निर्माण किया । राजा भरत ने वरदाम तीर्थ के देवों को हृदय में धारण कर अष्टम तप किया । पौषध पूर्ण होने पर पौषधशाला से निकल कर धनुर्धारियों के अग्रणी चक्रवर्ती ने कालपृष्ठ नामक धनुष धारण कर स्वर्ण निर्मित रत्नजड़ित एवं जल लक्ष्मी के निवासगृह तुल्य रथ पर ग्रारोहण किया । देव से जैसे मन्दिर शोभित होता है उसी प्रकार सुन्दराकृति महाराज भरत के उपवेशन से रथ सुशोभित हुआ । ग्रनुकूल पवन से पताकाएँ आकाश को जिस प्रकार मण्डित करती हैं उसी प्रकार उस उत्तम रथ ने जहाज की तरह समुद्र जल में प्रवेश किया। रथ को नाभि पर्यन्त समुद्र जल में ले जाकर सारथी ने लगाम खींची । घोड़े खड़े हो गए, रथ रुक गया फिर प्राचार्य जैसे शिष्य को नम्र करते हैं ।
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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