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________________ [१७५ अभिनन्दित प्रभु के केवल-ज्ञान की महिमा देखकर भरतपूत्र मरीचि ने भी व्रत ग्रहण कर लिया। भरत की आज्ञा मिलने पर ब्राह्मी भी दीक्षित हो गई। कारण, लघुकर्म युक्त जीवों के लिए गुरु का उपदेश प्रायः साक्षीमात्र ही होता है। (श्लोक ६४८-६५०) बाहबली की प्राज्ञा पाकर सुन्दरी भी दीक्षा लेने को उद्यत हो गई; किन्तु भरत के निषेध करने पर वह प्रथम श्राविका बनी। भरत ने भी प्रभु से श्रावक धर्म ग्रहण किए। कारण, योग्य कर्मों को भोगे बिना व्रत प्राप्त नहीं होता। मनुष्य, तिर्यंच और देवताओं को उसी परिषद में किसी ने साधु व्रत ग्रहण किया तो किसी ने सम्यक्त्व ग्रहण किया। उन राज तपस्वियों के मध्य कच्छ और महाकच्छ को छोड़कर अन्य समस्त तापस प्रभु के निकट आकर सहर्ष पुनः दीक्षित हो गए। उसी समय से चतुर्विध संघ को प्रतिष्ठा का नियम प्रत्तित हुआ। उसी चतुर्विध संघ में ऋषभसेन (पुण्डरीक) प्रमुख साधु और ब्राह्मी प्रमुख साध्वी बनी। भरत प्रमुख श्रावक और सुन्दरी प्रमुख श्राविका हुई। चतुविध संघ की यह व्यवस्था तब से आज तक एक श्रेष्ठ गृहरूप में चलती आ रही है। (श्लोक ६५१-६५६) उसी समय प्रभु ने गणधर नाम कर्मयुक्त ऋषभसेन आदि ८४ लोगों को सद्बुद्धि सम्पन्न साधूनों के समस्त शास्त्र जिनमें समाविष्ट हों ऐसे उत्पाद, ब्यय और ध्रौव्य नाम युक्त पवित्र त्रिपदी का उपदेश दिया। उसी त्रिपदी के अनुसार गणधरों ने अनुक्रम से चतुर्दश पूर्व और द्वादशांगी की रचना की। फिर देवताओं द्वारा परिवृत्त इन्द्र, दिव्य सुगन्ध भरे चूर्ण (वासक्षेप) का एक थाल लेकर प्रभु के चरणों के पास खड़े हो गए। भगवान् ने खड़े होकर गणधरों पर वासक्षेप निक्षेप किया और सूत्र में, अर्थ में, सूत्रार्थ में, द्रव्य में, गुणपर्याय में एवं नय में उन्हें अनुज्ञा देकर गण की आज्ञा भी दी। फिर देवता मनुष्य और उनकी स्त्रियों ने दुन्दुभि ध्वनि के साथ उन पर चारों ओर से वासक्षेप निक्षेप किया। मेघवारि को ग्रहण करने वाले वक्ष की भांति प्रभु की वाणी ग्रहरणकारी समस्त गरगधर करबद्ध होकर खड़े हो गए। तत्पश्चात् भगवान् ने पूर्व की तरह पूर्वाभिमुखी सिंहासन पर बैठकर पुनः हितप्रद धर्मोपदेश दिया। इस प्रकार प्रभु रूपी समुद्र से उत्थित होकर उपदेश रूपी ज्वार से उच्छ्वसित
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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