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________________ १७२] क्षय हो गया है जिनका मिथ्यात्व मोहनीय और सम्यक्त्व मोहनीय अच्छी तरह से क्षय हो गया है जो क्षायक सम्यक्त्व के सम्मुखीन हैं ऐसे और सम्यक्त्व मोहनीय के अन्तिम अंश का भोग कर रहे हैं ऐसे जीवों को वेदक नामक चतुर्थ सम्यक्त्व प्राप्त होता । सात प्रकृतियाँ (अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय और मिथ्यात्व मोहनीय क्षय करने में तत्पर शुभ भाव-युक्त जीव को क्षायिक नामक पचम सम्यक्त्व प्राप्त होता है । ( श्लोक ५९६-६०४ ) 'गुण भेद से भी सम्यक्त्व तीन प्रकार होता है । यथा रोचक, दीपक और कारक | शास्त्रोक्त तत्त्व से हेतु और उदाहरण व्यतिरेक से जो दृढ़ विश्वास उत्पन्न होता है उसे रोचक सम्यक्त्व कहते हैं । जो अन्य के सम्यक्त्व को प्रदीप्त करे उसे दीपक सम्यक्त्व कहते हैं और जो संयम और तपादि उत्पन्न करता है उसे कारक सम्यक्त्व कहते हैं । ये सम्यक्त्व सम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और प्रास्तिकता के लक्षणों से युक्त होते हैं । जिससे अनन्तानुबन्धी कषाय उत्पन्न नहीं होता उसे शम कहते हैं । सम्यक् प्रकृति से कषाय को देखने का नाम शम है । कर्म का परिणाम और संसार की प्रसारता का का विचार करते-करते विषयों से जो वैराग्य हो जाता है उसे संवेग कहते है | संवेग भावयुक्त जीवों के मन में संसार में रहना कारावास की तरह है । आत्मीय स्वजन बन्धन रूप है, ऐसा जो विचार आता है उसी विचार को निर्वेद कहा जाता है । एकेन्द्रिय प्रादि समस्त प्राणी को संसार में दु:ख भोग करते देखकर मन में जो आर्द्रता आती है उसे दूर करने के लिए जो प्रवृत्ति होती है उसे नुकम्पा कहते है । अन्य तत्त्व सुनने पर भी प्रर्हत् तत्त्व पर जो गौरव और विश्वास रहता है उसे प्रास्तिकता कहते हैं । इस प्रकार सम्यक् दर्शन का वर्णन किया गया है । इसकी प्राप्ति अल्प समय के लिए होने पर भी पूर्व का जो मति प्रज्ञान था वह नष्ट होकर मतिज्ञान में, श्रुत ज्ञान श्रुत ज्ञान में और विभंग-ज्ञान श्रवधिज्ञान में रूपान्तरित हो जाता है । ( श्लोक ६०५- ६१६) 'समस्त प्रकार के सावद्य योग के परित्याग का नाम चारित्र है । यह हिंसादि व्रतों के भेद से पांच प्रकार का होता है । ग्रहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पांच व्रत भावनाओं से
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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