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________________ १६८] रूप कमल के लिए सूर्य रूप आपके दर्शनों से मेरा अन्धकार दूर हया। मेरे लिए यह जैसे सुप्रभात है। हे नाथ, भव्य जीवों के मन रूपी जल को निर्मल करने के लिए निर्मली तुल्य अापकी वाणी की जय हो। हे करुणा के क्षीर समुद्र, जो आपके शासन रूपी महारथ पर पारोहण करता है उनसे मोक्ष दूर नहीं रह सकता । हे देव, हे अकारण जगबन्धु, हम आपको साक्षात् देख रहे हैं इसलिए संसार को हम मोक्ष से अधिक मान रहे हैं। हे प्रभो, इस संसार में ही अपलक नेत्रों से आपके दर्शनों के महानन्द रूपी झरने में हमें मोक्ष सुख-स्वाद का अनुभव हो रहा है। हे नाथ, राग-द्वेष-कषाय आदि शत्रु द्वारा बद्धदशा प्राप्त इस संसार के लिए आप अभयदानकारी और बन्धनमुक्तकारी हैं। हे जगत्पति, आप तत्त्व का ज्ञान दीजिए, मार्गदर्शन कराइए और संसार की रक्षा कीजिए। अब इससे अधिक और मैं आपसे क्या प्रार्थना करूँ ? जो लोग नानाविध उपद्रव और युद्ध करके एक-दूसरे के ग्राम, नगर आदि छीन लेते हैं वे राजा भी परस्पर मैत्री धारण कर आपकी सभा में बैठे हुए हैं। अापके समबसरण में प्रागत हस्ती अपनी सूड से सिंह के पैरों को खींचकर उससे अपने कुम्भस्थल को बार-बार खुजला रहा है। यह भैंसा अपनी स्नेह भरी जीभ से बार-बार अन्य भैंस को चाटने की तरह ह्रस्वाकारी अश्व को चाट रहा है। क्रीड़ा करता हुआ यह मृग पूछ हिलाते-हिलाते कान ऊँचा और माथा नीचा कर अपनी नाक से बाघ के मुख को सूघ रहा है। यह तरुण विडाल अपने आस-पास प्रागे-पीछे दौड़ते हुए चहों का अपने बच्चों की तरह आदर कर रहा है। सर्प कुण्डली मारकर नकुल के पास निर्भय होकर बैठा है। हे देव, ये सब और अन्य प्राणी जो परस्पर वैर-भाव सम्पन्न हैं वे भी यहां निर्वैर बने उपस्थित हैं। इसका कारण आपका अतुल प्रभाव है। (श्लोक ५३३-५४९) राजा भरत इस प्रकार जगत्पति की स्तुति कर क्रमशः पीछे हटे और स्वर्गपति इन्द्र के पीछे जा बैठे। तीर्थनाथ के प्रभाव से उस योजन परिमित स्थान में ही कोटि-कोटि प्राणी बिना किसी कष्ट का अनुभव किए बैठे हुए थे। (श्लोक ५५०-५५१) तब समस्त भाषा को स्पर्श करने वाली पैंतीस अतिशय सम्पन्न योजनगामिनी वाणी से प्रभु ने इस प्रकार उपदेश देना
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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