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________________ [ १६७ 'देवि, वह देखिए देवी और देवताओं ने प्रभु के समवसरण की रचना की है । सुनिए पिताजी के चरणों की सेवा से प्रानन्दित बने देवताओं की जय ध्वनि । प्रभु के चरण रूप प्रकाश में बजती हुई दुन्दुभि गम्भीर और मधुर शब्द से हृदय में श्रानन्द उत्पन्न कर रही है । प्रभु के चरणों में वन्दन करने वाले देवताओं के विमानों से निकलती हुई घु ंघरुत्रों की आवाज मैं सुन रहा हूं । भगवान् के दर्शनों से आनन्दित देवताओं का मेघ गर्जन-सा सिंहनाद प्रकाश में गूँज रहा है । ताल स्वर और राग समन्वित पवित्र गन्धर्व गीत प्रभु वाणी की दासी-सा हम लोगों को ग्रानन्दित कर रहा है । भरत के कथन से उत्पन्न ग्रानन्दाश्रु से मरुदेवी माता की प्रांखों के जाले इस तरह कट गए जिस तरह जल के प्रवाह से प्रावर्जना धुल जाती है । अत: उन्होंने पुत्र की अतिशय सहित तीर्थंकरत्व लक्ष्मी को अपनी ग्रांखों से देखा और उस ग्रानन्द में लीन हो गई । उसी समय के समकाल में ग्रूपूर्वकरण के क्रम से क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ होकर प्रष्ट कर्म क्षय करते हुए केवल ज्ञान प्राप्त किया और उसी समय आयु पूर्ण हो जाने के कारण हस्तीपृष्ठ पर बैठ हुए ही उन्होंने अव्यय मोक्ष पद प्राप्त किया। इस अवसर्पिणी काल में मरुदेवी माता प्रथम सिद्ध हुई । देवताओं ने उनका सत्कार कर उनकी देह को क्षीरसमुद्र में निक्षेप कर दिया । उस दिन से लोक में मृत का सत्कार करना प्रारम्भ हुआ । कहा भी गया है - महापुरुष जो कार्य करते हैं वे ही आचार रूप स्वीकृत हो जाते हैं । ( श्लोक ५१९-५३२ ) मरुदेवी माता की मोक्ष प्राप्ति से राजा भरत हर्ष और शोक से इस प्रकार व्याकुल हो गए जैसे मेघ की छाया और सूर्य के प्रालोक से शरत का दिन होता है । फिर भरत ने राजचिह्न परित्याग कर परिवार सहित पैदल चलते हुए उत्तर दिशा के द्वार से समवसरण में प्रवेश किया। वहां चार निकायों के देवों से परिवृत्त और दृष्टि रूपी चकोर के लिए चन्द्रमा रूप प्रभु को देखा । भगवान् को प्रदक्षिणा देकर प्रणाम किया और युक्त कर माथे पर रख इस प्रकार स्तुति करने लगे - 'हे अखिलनाथ, आपकी जय हो ! हे विश्व को अभयदान देने वाले, आपकी जय हो ! हे प्रथम तीर्थकर, हे जगत्त्राता, आपकी जय हो ! आज इस अवसर्पिरगी में उत्पन्न लोक
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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