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________________ [१६३ रख देते। जगत्पति ने पूर्व द्वार से समवसरण में प्रवेश कर चैत्य वृक्ष की प्रदक्षिणा दी। फिर तीर्थ को नमस्कार कर सूर्य जैसे पूर्वांचल पर आरूढ़ होता है उसी प्रकार जगत् के मोह रूपी अन्धकार को नष्ट करने के लिए पूर्वाभिमुखी सिंहासन पर आरूढ़ हुए। उस समय व्यन्तर देवतायों ने अन्य तीन दिशाओं में सिंहासन पर प्रभु की रत्नमय तीन प्रतिमाएं स्थापित की। यद्यपि देवतागण प्रभु के अंगुष्ठ की प्रतिकृति भी यथायोग्य बनाने में समर्थ नहीं थे फिर भी प्रभु के प्रताप से प्रभु की प्रतिमा यथायोग्य निर्मित हो गई । प्रभु के मस्तक के चारों ओर भामण्डल प्रकट हुआ। उस मण्डल की द्युति के सम्मुख सूर्यमण्डल की द्युति खद्योत-सी लगने लगो । मेघसी गम्भीर शब्दकारी देव-दुन्दुभि बजने लगी। उसकी प्रतिध्वनि से चारों दिशाएँ शब्दायमान हो गई। प्रभु के निकट एक रत्नमय ध्वजा थी। वह ऐसी सुशोभित हो रही थी मानो धर्म पृथ्वी के ये ही एकमात्र प्रभु हैं ऐसा संकेत करने के लिए अपना एक हाथ उत्तोलित कर रही है। (श्लोक ४५८-४६७) फिर विमानपति देवों की देवियां पूर्व द्वार से पाई। वे उन्हें तीन प्रदक्षिणा देकर तीर्थ और तीर्थङ्कर को नमस्कार कर प्रथम प्राकार में साधु-साध्वियों के लिए स्थान रखकर अपने स्थान के अग्निकोण में खड़ी हो गई। भुवनपति ज्योतिष्क और व्यन्तर देवों की देवियां दक्षिण द्वार से प्रवेश कर और पूर्व विधि का पालन कर क्रमशः विमानपति देवों की भांति नैऋत्य कोण में जाकर खड़ी हो गई । भवनपति, ज्योतिष्क और व्यतर देवतागण पश्चिम दिशा के द्वार से प्रवेश कर उपयुक्त विधि का पालन कर वायव्य कोण में जाकर बैठ गए। वैमानिक देव और मनुष्य स्त्री-पुरुष उत्तर दिशा के द्वार से प्रवेश कर पूर्व विधि के अनुसार ईशान कोण में जाकर बैठ गए। वहां पहले आने वाले अल्पऋद्धि सम्पन्न, पीछे आने वाले ऋद्धि सम्पन्न को नमस्कार करते और पीछे आने वाले आगे वाले को नमस्कार करके आगे चले जाते । प्रभु समवसरण में किसी का भी ग्राना निषेध नहीं था। वहां विकथा नहीं थी, विरोधियों के मध्य विरोध नहीं था और किसी का भय नहीं था। द्वितीय प्राकार में तिर्यंच प्राण आकर बैठ गए और तृतीय प्राकार में सबके वाहन रह गए । तृतीय प्राकार के बहिर्देश में तिर्यंच, मनुष्य और देवता आते
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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