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________________ १६२] संध्या के समय चन्द्र-सूर्य जैसे आमने-सामने होते हैं उसी तरह रक्तवणे दो ज्योतिष्क देवता द्वारपाल बने थे। उत्तरी द्वार पर उन्नत मेघ से कृष्णवर्ण दो भवनपति देव दोनों ओर द्वारपाल बनकर स्थित थे। (श्लोक ४४२-४४५) द्वितीय प्राकार के चारों द्वारों के दोनों ओर क्रमश: अभयपाश, अंकुश और मुद्गल धारण कर श्वेतमणि, शोरणमणि, स्वर्णमरिण और नीलमणि के सदृश कान्ति सम्पन्न और जैसा कि ऊपर कहा गया है उसी प्रकार चार निकायों की जया, विजया, अजिता, अपराजिता नामक दो-दो देवियां प्रतिहारियों की भांति खड़ी थीं। (श्लोक ४४८-४४९) शेष बाहर के प्राकार के चारों दरवाजों पर तुम्बरूधारी, खट्वांगधारी, नमुण्डमाली और जटामुकुटधारी नामक चार देव प्रतिहारियों के रूप में खड़े थे। (श्लोक ४५०) समवसरण के मध्य में तीन कोश दीर्घ चैत्यवृक्ष व्यन्त र देवों ने स्थापित किया जो कि तीन रत्नों (ज्ञान, दर्शन, चारित्र) के उदय से लग रहे थे। उस वृक्ष के नीचे विविध रत्नों की एक पीठिका निर्मित की और उसी पीठिका के ऊपर अनुपम मरिणयों का छन्दक स्थापित किया। छन्दक के मध्य पूर्व दिशा की ओर लक्ष्मी के सार रूप से पादपीठ सहित रत्न सिंहासन स्थापित किया और उस सिंहासन के ऊपर तीन लोक के स्वामित्व के चिह्न रूप तीन छत्र शोभित थे। सिंहासन के दोनों ओर दो यक्ष चँवर लिए खड़े थे। चँवर ऐसे लग रहे थे मानो हृदय में समस्त भक्ति धारण न कर सकने के कारण वह बाहर निकल आई है एवं दोनों चँवर उसके समूह है । समवसरण के चारों द्वार पर अलौकिक कान्तिमय धर्मचक्र स्वर्ण कमल पर रखा हुआ था। अन्य जो कुछ करणीय था व्यन्तर देवताओं ने वे समस्त कार्य किए । कारण, साधारणतः समवसरण के अधिकारी वही होते हैं । (श्लोक ४५१-४५७) __ प्रभात के समय चार निकाय के कोटि-कोटि देवताओं के साथ प्रभु समवसरण में प्रवेश करने चले। उस समय देवतागण हजार-हजार पंखुड़ियों वाले नौ स्वर्ण कमल बनाकर प्रभु के सम्मुख रखने लगे। उनमें दो पर प्रभु चरण रखने लगे और देव जैसे ही प्रभु के चरण अग्रवर्ती कमल पर पड़ते वैसे ही पीछे के कमल आगे
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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