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________________ [१६१ से उत्पन्न दिक समूहों का प्रसन्न हास्य हो। ध्वजाए आन्दोलित हो रही थीं। उन्हें देखकर लगता जैसे पृथ्वी महानंद में नृत्य करने के लिए हस्त उत्तोलित कर रही है। तोरणों के नीचे स्वस्तिकादि अष्टमंगल चित्र अंकित किए गए थे। वे पूजा की वेदी-से लगते थे। वैमानिक देवों ने समवसरण के ऊपर का प्रथम प्राकार रत्नों से निर्मित किया। वह प्राकार ऐसा लगता था मानो रत्नगिरि की रत्न मेखला वहां लाकर स्थापित कर दी हो। उस प्राकार के ऊपर मणि निर्मित कगूरों से निकलता हुआ किरण-जाल आकाश को विचित्र रंगों के वस्त्रों में परिणत कर रहा था। (श्लोक ४२२-४३३) मध्य में ज्योतिष्क देवताओं ने सूवर्णमय द्वितीय प्राकार की रचना की। वह प्राकार उनके ज्योतिर्मय देह पिण्ड-सा लग रहा था। उस प्राकार पर भी रत्नों के कंगूरे देवों ने निर्मित किए। वे ऐसे लग रहे थे मानो देव और असुर नारियों के मुख देखने के दर्पण हों। भवनपति देवताओं ने बहिर्मार्ग में रजतमय प्राकार का निर्माण किया। उसे देखकर लगा जैसे भक्ति के लिए वैताढ्य पर्वत मण्डला. कृति बन रहा है। उस प्राकार पर स्वर्णमय कंगूरों का निर्माण किया। वे देवताओं के सरोवर में प्रस्फुटित स्वर्णकमल-से लग रहे थे। उन तीन प्राकारों से युक्त भूमि, भवनपति, ज्योतिष्क और वैमानिक देवताओं की लक्ष्मी मानो एक गोलाकृत कुण्डल में शोभित हो रही हो ऐसी प्रतीत होती थी। पताका शोभित मरिणमय तोरण ऐसे लगते थे मानो स्वकिरणों से भिन्न पताकाएँ अान्दोलित कर रहे हैं। प्रत्येक प्राकार के चार-चार द्वार थे। वे चतुर्विध धर्म की क्रीड़ा करने के निमित्त बने अलिन्द से लग रहे थे। प्रत्येक द्वार के निकट व्यन्तर देवताओं द्वारा रक्षित धूपदान से इन्द्रनीलमणि के स्तम्भ की तरह धूमरेखा विस्तृत कर रहे थे। (श्लोक ४३४-४४१) उस समवसरण के प्रत्येक द्वार के निकट प्राकार से चार पथ और मध्य में स्वर्ण कमल सरोवर निर्मित किए गए थे । द्वितीय प्राकार के ईशान कोण में प्रभु के विश्राम के लिए वेदिका-सा एक देवछन्द निर्मित किया गया था। भीतर के प्रथम प्राकार के पूर्व द्वार पर दोनों ओर सोने-सी कान्ति वाले दो वैमानिक देव द्वारपाल बने खड़े थे । दक्षिण द्वार के दोनों ओर मानो एक दूसरे के प्रतिबिम्ब हों ऐसे उज्ज्वल दो व्यन्तर द्वारपाल बने थे। पश्चिम द्वार पर
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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