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कु'जर जिस प्रकार निकुज में प्रवेश करता है उसी प्रकार एक बार प्रभु सन्ध्या के समय बाहुबली के राज्य में तक्षशिला के निकट आए और नगर के बाहर एक उपवन में कायोत्सर्ग ध्यान में स्थित हो गए। उद्यानपाल ने यह संवाद बाहबली को दिया । उसी क्षरण बाहुबली ने नगर के रक्षकों को आदेश दिया-हाट-बाट ग्रादि को सजाकर नगर को सुसज्जित करो। इस आज्ञा के प्राप्त होते ही नगर के स्थान-स्थान पर कदली वृक्ष की तोरण माला तैयार की गई। जिससे लटकते हुए केले पथचारियों के मुकुटों को स्पर्श करने लगे । भगवान् के दर्शनों को मानो देवतागरण आए हों इस प्रकार प्रत्येक राज-पथ पर, रत्नपात्रों से अलंकृत मंच निर्मित किए गए। हवा में उड़ती हुई उच्च पताकाओं की श्रेणी से वह नगर एसा लगता था मानो वह सहस्रहस्त बनकर नृत्य कर रहा है। चारों प्रोर नवीन कुकुम जल का छिड़काव कर देने के कारण ऐसा लगता जैसे समस्त नगर की मिट्टी ने मंगल अंगराग लगाया है। भगवान् के दर्शन करने की उत्कण्ठा रूप चन्द्रदर्शन से समस्त नगर कुमुद खण्ड की भांति विकसित हो उठा। अर्थात् किसी को भी उस रात नींद नहीं आई। सुबह ही प्रभुदर्शन से निज अात्मा और जनगण को पवित्र करूगा ऐसी इच्छा वाले बाहुबली की वह रात्रि समाप्त होकर सवेरा होते ही प्रतिमास्थिति समाप्त कर पवन की भांति प्रभु अन्यत्र प्रस्थान कर गए।
(श्लोक ३३५-३४४) जैसे ही प्रभात हा बाहुबली उपवन की अोर जाने के लिए प्रस्तुत हुए। उसी समय सूर्य की भांति बड़े-बड़े मुकुटधारी-मण्डलेश्वर और समाधान के मन्दिर तुल्य साक्षात् शरीरधारी अर्थशास्त्र के शुक्रादि समान अनेक मन्त्रीगण वहां बाहुबली की सेवा में उपस्थित थे। गुप्तपक्ष गरुड़ तुल्य जगत् को उल्लंघन करने वाले वेगधारी लक्ष-लक्ष अश्व श्रेणियों से वह स्थान सुशोभित हुआ। दीर्घकाय बहुत से ऐसे हाथी भी वहां उपस्थित थे जिनके मस्तक से मदजल प्रवाहित हो रहा था। उन्हें देखकर लगता था मानो पृथ्वी की धूल को शान्त करने के लिए प्रस्रवणयुक्त महागिरि वहां उपस्थित हुआ है। पाताल कन्या-सी सुन्दर असूर्यम्पश्या बसन्तश्री आदि अन्त:पुर की ललनाएं प्रस्तुत होकर उनके चारों ओर खड़ी थीं। उनके दोनों ओर चामरधारिणी रमणियां खड़ी थीं जिससे वे राजहंस युक्त गंगा