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________________ १५४] युवराज बोले- 'ग्रन्थ पढ़ने से जैसे बुद्धि उत्पन्न होती है उसी प्रकार प्रभु को देखने मात्र से मुझे जाति स्मरण ज्ञान हो गया । सेवक जिस प्रकार प्रभु के साथ एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाता है उसी प्रकार मैंने भी प्रभु के साथ पाठ जन्म व्यतीत किए हैं। इस जन्म के पूर्व द्वितीय जन्म में विदेह भूमि में प्रभु के पिता वज्रसेन नामक तीर्थंकर थे । प्रभु ने उनसे दीक्षा ग्रहण की थी। मैंने भी उसी समय दीक्षा ग्रहण कर ली थी । उस जन्म का स्मरण होने से मैं समस्त बातें जान सका हूं । गत रात्रि में मैंने, मेरे पिता और सुबुद्धि श्रेष्ठी ने जो स्वप्न देखा था उसका प्रत्यक्ष फल प्राप्त किया । मैंने स्वप्न में कृष्ण वर्ण मेरु को दुग्ध द्वारा धोकर उज्ज्वल किया था । उसी के फलस्वरूप तपस्या द्वारा दुबले बने प्रभु को इक्षुरस से पारणा करवा कर इनकी शोभा को वर्द्धित किया है । मेरे पिता ने शत्रु के साथ जिन्हें युद्ध करते देखा वे ये प्रभु ही थे । प्रभु ने मेरे द्वारा कराए गए पारणे की सहायता से परिग्रह रूपी शत्रु को पराजित कर दिया है। सुबुद्धि श्रेष्ठी ने स्वप्न देखा था सूर्य मण्डल से पतित होती सहस्रकिरणों को मैंने पुन: संस्थापित कर दिया था जिससे सूर्य और अधिक जाज्वल्यमान हो गया । प्रभु सूर्य के ही समान हैं । अनाहारी रहने पर सूर्य सा केवल ज्ञान नष्ट हो जाता । प्रभु को पारणा करवा कर आज मैंने इन्हें कैवल्य लाभ के पथ पर संस्थापित कर दिया है । इससे भगवान् और प्रदीप्त हो उठे हैं ।' श्रेयांस के कथन को सुनकर सभी ने उन्हें धन्य-धन्य कहा और अपने-अपने घर को लौट गए । ( श्लोक ३२०-३२९) I श्रेयांस के घर पारणा कर प्रभु वहां से अन्यत्र विहार कर गए । कारण, छद्मस्थ तीर्थंकर एक स्थान पर कभी नहीं रहते । भगवान् ने जिस स्थान पर पारना किया उसे कोई उल्लंघन न करे इसलिए वहां श्रेयांसकुमार ने एक रत्नमय पीठिका बनवा दी और उस रत्नमय पीठिका को साक्षात् प्रभु के चरण समझकर भक्तिभाव से उनकी त्रिकाल वन्दना पूजा करने लगे । यदि लोग पूछते - 'क्या है' तो वे उत्तर देते—'यह ग्रादिकर्त्ता का मण्डल है |' तत्पश्चात् प्रभु जहां-जहां भिक्षा ग्रहण करते वहां-वहां ऐसी पीठिकाएँ प्रस्तुत करवाते । इसी से क्रमश: 'प्रादित्य पीठ' उपासना प्रचलित हो गई । ( श्लोक ३३०-३३४) 1
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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