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प्रपितामह हैं । भाग्योदय से ही मुझे आज इनके दर्शन हुए हैं। ये प्रभु ही तो साक्षात् मोक्ष हैं जो कि इस रूप में समस्त पृथ्वी पर व मुझ पर कृपा करने यहाँ पाए हैं । कुमार जब इस तरह चिन्तन कर रहे थे उसी समय कोई व्यक्ति पाया और बड़ी प्रसन्नतापूर्वक उन्हें नवीन इक्षुरस पूर्ण कलश उपहार रूप में दिए । जाति स्मरण ज्ञान से निर्दोष भिक्षा देने की विधि जानने वालेश्रेयांस. कुमार ने प्रभु से प्रार्थना की-'हे भगवन्, इस कल्पनीय इक्षरस को स्वीकार कीजिए। तभी प्रभु ने भी अंजलि रूपी हस्तपात्र उनके सम्मुख फैला दिए। श्रेयांसकुमार इक्षुरस भरे उन कलशों से प्रभु की अंजलि में रस ढालने लगे। प्रभु ने अपनी अंजलि में बहुत-सा रस ग्रहण किया किन्तु कुमार का हृदय उतने से सन्तुष्ट नहीं हुआ। स्वामी की अंजलि में रस इस तरह स्थिर हुआ मानो उसकी शिखा आकाश स्पर्श करने के लिए जम गई हो । तीर्थंकरों का तो प्रभाव हो अचिन्त्य होता है। प्रभु ने उस रस से पारणा किया और सुर-असुर मनुष्यों के नेत्रों ने उनके दर्शन रूपी अमृत का पान किया । उसो समय श्रेयांस के कल्याण को प्रसिद्ध करने वाली चारण रूप आकाश में प्रतिध्वनि से वृद्धि प्राप्त दुन्दुभि जोर-जोर से बजने लगो। मनुष्यों के नेत्रों स पतित प्रानन्दाश्रुषों के साथ साथ देवतागण आकाश से रत्न वर्षा करने लगे। ऐसा लगा मानो प्रभु के चरणों से पवित्र पृथ्वी को पूजा करने के लिए वे पंचरंगी पुष्पों की वर्षा कर रहे है । समस्त फूलों के समूह से संचित सुगन्ध-से गन्धोदक की देवताओं ने वृष्टि की। आकाश को विचित्र मेघों से चित्रित करने के लिए मानो देवता और मनुष्य उज्ज्वल वस्त्र ऊपर की ओर उत्क्षिप्त करने लगे। वैशाख शुक्ला तृतीया को दिया गया यह दान अक्षय हुया और वह दिन अक्षय तृतीया के नाम से आज भी प्रचलित है। संसार में दान धर्म श्रेयांस कुमार से एवं अन्य समस्त व्यवहार भगवान् ऋषभनाथ द्वारा प्रारम्भ हुा ।
(श्लोक २७६-३०२) ___ भगवान् ने पारणा किया इससे देवताओं ने जो रत्नादि की वर्षा की उसे देखकर नगरवासी आश्चर्य चकित हो श्रेयांसकुमार के प्रासाद की ओर पाने लगे। कच्छ और महाकच्छ आदि क्षत्रिय तपस्वी भी भगवान् के आहार ग्रहण का संवाद पाकर बहुत प्रसन्न हए और वहाँ पाए। राजा, गागरिक और जनपदवासियो की देह