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________________ [१४५ जिस प्रकार बसन्त ऋतु द्वारा विविध प्रकार के पुष्पों की वृद्धि होती है उसी प्रकार इनकी सेवा करने वालों को इन्द्र की सम्पत्ति प्राप्त होती है । मुक्ति की छोटी बहन अहमिन्द्र की लक्ष्मी भी इनकी सेवा करने वाले को तत्काल प्राप्त होती है। इन जगत्पति की सेवा करने वाले को तो मृत्यु रहित आनन्दमय मोक्ष पद भी प्राप्त होता है । अधिक क्या कहूं, इनको सेवा करने से इहलोक में इन्हीं की भांति त्रिभुवन का प्राधिपत्य और परलोक में सिद्ध गति तक प्राप्त होती है। मैं इन्हीं प्रभु का दास हूँ और तुम लोग भी इनके किंकर हो । अतः प्रभु की सेवा के फलस्वरूप मैं तुम्हें विद्याधरों का ऐश्वर्य दान करता हूं। यह बात स्मरण रखना यह राज्य तुम्हें प्रभु की सेवा के कारण ही प्राप्त हुआ है। पृथ्वी पर अरुणोदय सूर्य के द्वारा ही होता है। तत्पश्चात् धरणेन्द्र ने उन्हें गौरी प्रज्ञप्ति प्रादि अड़तालिस हजार विद्याएँ जो कि पढ़ने मात्र से सिद्ध होती हैं प्रदान की और बोले- 'वैताढ्य पर्वत पर जागो और वहाँ दोनों ओर नगर स्थापित कर अक्षय राज्य करो।' | (श्लोक १५७-१७१) तब उन्होंने भगवान् को नमस्कार किया और विद्याबल से पुष्पक विमान की सरचना कर नागराज सहित उसमें बैठकर वहाँ से प्रस्थान किया। सर्वप्रथम वे अपने पिता कच्छ-महाकच्छ के पास गए और स्वामी सेवा के फलस्वरूप वृक्ष-फल-सी नवीन सम्पत्ति का जो लाभ हुप्रा वह वरिणत किया। फिर भरत के निकट जाकर अपने वैभव की कथा सुनाई। कारण अभिमानी पुरुष के मान की सिद्धि अपनी वैभवशाली स्थिति को बताने से ही सफल होती है। फिर वे स्वजन-परिजन सहित उत्तम विमान में चढ़कर वैताढ्य पर्वत पर (श्लोक १७२-१७५) __ वैताढ्य पर्वत के प्रान्त भाग को लवण समुद्र की तरंगे चूम रही थीं। वह पर्वत पूर्व और पश्चिम दिशा का मानदण्ड-सा प्रतीत होता था। वह पर्वत उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य की मानो सीमा-सा था। वह पर्वत पचास योजन विस्तृत सवा छह योजन पृथ्वी के नीचे निहित था। और भू-पृष्ठ से पाँच सौ योजन ऊँचा था। गंगा और सिन्धु नदी इसको विभाजित कर इस प्रकार प्रवाहित होती मानो हिमालय अपनी दोनों भुजाओं को प्रसारित कर उसका आलिंगन कर रहा है। उभय भरतार्द्ध की लक्ष्मी के
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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