SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१३६ संभावना है उसका परित्याग करता हूं' ऐसा कहकर मोक्ष मार्ग के रथ तुल्य चारित्र को ग्रहण कर लिया। शरत् ताप से तप्त व्यक्ति को मेघ की छाया में जैसे सामान्य समय के लिए सुख होता है उसी प्रकार नारकी जीवों को भी क्षणमात्र के लिए सुख की अनुभूति हुई । उसी समय दीक्षा हो गई यह संकेत पाते ही प्रभु को मनःपर्यय ज्ञान उत्पन्न हुआ । कच्छ और महाकच्छ आदि चार हजार राजारों ने भी प्रभु के साथ ही दीक्षा ग्रहण कर ली। मित्रों ने उन्हें निषेध किया, बन्धुग्रो ने मना किया, भरतेश्वर ने उन्हें बार-बार निवत होने को कहा फिर भी वे स्त्री-पुरुष राज्यादि का तगवत परित्याग कर प्रभु की कृपा का स्मरण कर भ्रमर की भांति प्रभु के चरणकमलों के विरह को असह्य समझ कर जो पथ स्वामी का है वही पथ हमारा पथ है यह निश्चय कर अानन्द के साथ चारित्र ग्रहण किया। ठीक ही तो कहा गया है-भृत्यो का यही क्रम होता है अर्थात् सभी अवस्थानों में वे प्रभु का अनुसरण करते हैं। (श्लोक ६५-८०) फिर इन्द्र करबद्ध होकर प्रभु की स्तुति करने लगे-'हे प्रभो, हम लोग अापके यथार्थ गुरणों का वर्णन करने में असमर्थ हैं फिर भी यापकी स्तुति करते हैं, कारण, आपके प्रभाव से हमारी बुद्धि का विकास होता है। हे स्वामी, त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा का परित्याग करने के कारण प्राभयदान रूपी दानशाला-से आपको हम नमस्कार करते हैं। मिथ्या का परित्याग करने के कारण निर्मल और हितकारी सत्य और प्रिय वचन रूप सुधापूर्ण समुद्र-से आपको हम नमस्कार करते हैं। अदत्तादान त्याग रूपी मार्ग बन्द हो गया था इस पथ में प्रथम पदक्षेप कर उस पथ को पुनः प्रवत्तित करने के कारण हे प्रभु, हम अापको नमस्कार करते हैं। कामदेव रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले अखण्डित ब्रह्मचर्य रूपी महान् तेजपुञ्ज सूर्य-से अापको हम नमस्कार करते है। तृणवत् धरती और सम्पद आदि सर्व प्रकार के परिग्रहों का एक साथ परित्याग करने वाले निर्लोभ अात्मसम्पन्न हे प्रभो, आपको हम नमस्कार करते हैं। पंच महाव्रत रूप भार वहनकारी वृषभ तुल्य और संसार समुद्र को अतिक्रम करने में कच्छप समान आपको हम नमस्कार करते हैं। पांच महाव्रतों की सहोदरा भगिनी की भांति पांच समितियों को धारणकारी हे प्रभो, हम आपको नमस्कार करते हैं। प्रात्मभाव
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy