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भागने लगा । कोई जल की मछली की तरह लोक-समूह में प्रवेश कर प्रभु को देखने की इच्छा से लोगों के बगल से गुजरते हुए आगे बढ़ने लगा । जगत्पति के पीछे जो स्त्रियां दौड़ रही थीं, दौड़ने के कारण उनके मुक्ताहार टूट गए। देखकर लगा मानो वे अञ्जलि में खोई लेकर प्रभु का स्वागत कर रही हैं । प्रभु आ रहे हैं यह सुनकर कुछ स्त्रियां लड़कों को गोद में लेकर स्थिरता से खड़ी थीं । वे वानर सहित लता - सी लगती थीं । स्तनभार से मन्दगति से चलने वालो युवतियां अपने दोनों ओर स्त्रियों के गले में हाथ डाल कर चल रही थीं, मानो उन्होंने दो डैने उत्पन्न कर लिए हैं । कुछ स्त्रियां प्रभु को देखने के उत्साह की गति को भंग करने वाले अपने नितम्बों की निन्दा कर रही थीं । राह के दोनों ओर घर की कुल वधुएँ कुसुम्भी वस्त्र परिधान कर पूर्ण पात्र हाथ में लिए खड़ी थीं । वे चन्द्रमा सह सन्ध्या की सहोदरा भगिनियों सी प्रतीत होती थीं । कुछ रमणियां प्रभु को देखने के लिए उत्सुक बनी साड़ी के ग्रांचल को हाथ से चँवर की तरह डुला रही थीं । कुछ स्त्रियां प्रभु पर खोई बरसा रही थीं, मानो निर्भर योग्य पुण्य बीज - वपन कर रही हों । कुछ सौभाग्यवतियां 'चिरंजीवी होप्रो, चिरंजीवी होप्रो, चिर ग्रानन्द लाभ करो' ऐसा आशीर्वाद दे रही थीं । कुछ चपलनयना नगरनारियां स्थिरनयना होकर द्रुत व धीर गति से प्रभु के पीछे-पीछे जा रही थीं । ( श्लोक ३५-४९ )
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उस समय चार निकाय के देवतागरण विमानों के द्वारा पृथ्वी को छायान्वित कर प्रकाश में उपस्थित होने लगे । कुछ देवता मदजलवर्षणकारी हस्ती - पृष्ठ पर ग्रा रहे थे । देखकर लगा जैसे वे आकाश को मेघमय कर रहे हैं । आकाश रूप समुद्र में नौका रूप ग्रश्व पर आरोहण कर डांड़ रूपी चाबुक से उन्हें संचालित कर कुछ देवता प्रभु को देखने आ रहे थे । कुछ देवता मानो मूर्तिमान् पवन हों इस प्रकार के रथ पर चढ़कर नाभि-नन्दन को देखने आए | लगता था रथ के गति वेग पर उन्होंने बाजी लगाई है इसलिए वे मित्रों को भी पथ नहीं देते थे । स्वग्राम को पहुंचे पथिक की भांति प्रभु के निकट आकर 'यही स्वामी हैं, यही स्वामी हैं' कहते-कहते उन्होंने वाहनों का गति रुद्ध की । विमान रूपी अट्टालिका, हाथी, घोड़ा और रथों के कारण ऐसा लगता था मानो अनेक देवता श्रौर