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________________ [१२१ को पहनकर पांच पत्र विशिष्ट मन्थन-दण्ड जो कि प्रत्यक्ष मंगलरूप था लेकर अर्घ देने के लिए भगवान् के सम्मुख खड़ी हो गई । 'हे अर्घदानकारिणी, अर्घ देने योग्य इस वर को अर्घ दे, मक्खन छींट, समुद्र जैसे अमृत उछालता है वैसे थाल में से दही उछाल', 'हे सुन्दरी, नन्दनवन से लाए हुए चन्दन का रस तैयार कर । भद्रशाल वन की से जो दूब लाई गई थी वह ले पा । जिन भगवान् के ऊपर उपस्थित सभी लोगों के नेत्रों द्वारा जो सचल तोरण निर्मित हुपा है और जो त्रिलोक में उत्तम हैं ऐसे वर तोरण द्वार पर खड़े हैं । उनका शरीर उत्तरीय आवरण से ढका है । देखकर लगता है मानो गंगा नदी को तरंग में नवीन राजहंस जैसे आच्छादित हो गया है', 'हे सुन्दरी, हवा से फल झरने लगे हैं, चन्दन सूखने लगा है अतः वर को अधिक देर तक द्वार पर खड़ा मत रखो'-बीच-बीच में ऐसा कहती हुई देवांगनाएं धवल मंगलगीत गाने लगीं। उस अर्घदानकारिणी स्त्रो ने वर को अर्घदान किया। प्रवालग्रोष्ठा उस देवी ने धवल मंगल से शब्द करते हुए कंकणयुक्त हाथों से त्रिलोक स्वामी के ललाट को मन्थनदण्ड से तीन बार स्पर्श किया। तब भगवान् ने क्रीड़ावश बाएं पैर से, जिस प्रकार हिमखण्ड को चर किया जाता है, उसी प्रकार अग्नि सहित सराव सम्पुट को चूर-चूर कर दिया । अर्घप्रदानकारिणी देवी ने भगवान् के कण्ठ में कुसुम्भो वस्त्र स्थापित किया। उस वस्त्र द्वारा प्राकृष्ट होकर प्रभु ने मातृ-भवन में प्रवेश किया। (श्लोक ८३२-८४३) वहीं कामदेव के कन्द की भांति मदन-फल से सुशोभित सूत्र वर-वधू के हाथों में बांधा गया । देवियों ने वर को मातृदेवियों के सम्मुख उच्च सुवर्ण सिंहासन पर बैठाया। वे वहां इस प्रकार शोभित हुए जैसे मेरु पवत के शिखर पर सिंह सुशोभित होता है । सुन्दरियों ने शमी और पीपल वृक्ष की छाल का चूर्ण दोनों कन्याओं की हथेली में लेपन किया । उस कामदेव रूपी वृक्ष का दोहद पूर्ण किया है ऐसा लगता था। जब लग्न का ठीक समय उपस्थित हुया तब सावधानी से प्रभु ने दोनों कन्याओं के लेपयुक्त हाथों को अपने हाथ में धारण किया। उसी समय इन्द्र ने उनके लेपयुक्त हाथों में एक-एक मुद्रिका उसी प्रकार रखी जैसे जलपूर्ण मिट्टी में धान्य का बीज-वपन किया जाता है। प्रभु के दोनों हाथ जब उनके दोनों हाथों से मिलित हुए तब वे दो शाखाओं में लता वेष्टित होने पर वृक्ष जिस प्रकार शोभित
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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