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________________ [११९ कन्यानों के उबटन लगाया। उनके दोनों हाथ, दोनों घटनों, दोनों स्कन्ध और मस्तक पर नौ श्याम तिलक बनाए। वे उनकी देह पर नौ अमृत-कुण्ड तुल्य प्रतिभासित हो रहे थे। तकली में लपेटे कुसुम्भी सूत लेकर देवियों के दाएं-बाएँ अंगों का उन्होंने स्पर्श किया मानो उनकी देह समचतुरस्थ संस्थान वाली है या नहीं, अनुभूत किया । इस प्रकार दासियों की तरह अप्सरानों ने गौरवर्णा उन बालिकाओं के बदन में उनकी चपलता दूर करने के लिए उबटन लगाया। फिर ग्रानन्द से उत्फुल्लमना उन लोगों ने उनके शरीर में एक और विशेष प्रकार का उबटन लगाया। फिर वे कुलदेवी की तरह उनको अन्य प्रासनों पर बैठाकर सुवर्ण कलशों में भरे जल से स्नान कराया । सुगन्धित गैरिक वस्त्र से उनका शरीर पौंछा, कोमल रेशमी वस्त्र से उनके केश प्रावृत्त किए। फिर रेशमी वस्त्र पहनाकर उन्हें उनके आसनों पर बैठाया। उनके केशों से जलकरण इस प्रकार कर रहे थे मानो मोतियों की वहां वर्षा हो रही हो । स्निग्ध धूम रूपी लता में जिनकी शोभा बढ़ती है ऐसे उनके सामान्य भीगे केशों को दिव्य धूप से सुगन्धित किया। जिस प्रकार सुवर्ण पर गेरु का लेप होता है वैसे ही दोनों स्त्री रत्नों के शरीर में सुगन्धित अङ्गराग का लेपन किया। उनके गले में, हाथों के अग्रभाग में, स्तनों पर, कपोलों पर पत्रावली अंकित की। वे कामदेव की प्रशस्ति-सी प्रतीत हो रही थीं। कामदेव के अवस्थान के लिए नवीन मण्डल की भांति उनके ललाट पर चंदन के सुन्दर तिलक की रचना को। उनके नेत्रों के नील कमल-वन में भावी भ्रमर-सा कज्जल सज्जित किया। उनकी कवरी विकसित कुसुमदाम से ग्रथित की। वे ऐसे लग रहे थे मानो कामदेव ने अपने शस्त्रों को रखने के लिए शस्त्रागार निर्माण किया है । चन्द्रकिरण का भी तिरस्कार करने वाले जरी खचित दीर्धांचल युक्त विवाह वस्त्र उन्हें पहनाए । पूर्व और पश्चिम दिशा के मस्तक पर जैसे सूर्य और चन्द्र रहते हैं वैसे ही उनके मस्तक पर देदीप्यमान मुकुट रखा। उनके कानों में मणिमय अवतंस पहनाए । वे अपनी शोभा से रत्नांकुरित मेघपर्वत के समस्त अभिमान को चर कर रही थीं। कर्णलतानों में नवीन पुष्पमञ्जरी को भी बिडम्बित करने वाले मुक्ता के सुन्दर कुण्डल पहनाए। कण्ठ में विचित्र माणिक्य कान्ति से आकाश को प्रकाशित करने वाले संक्षेप किए हए इन्द्रधनुष की लक्ष्मी की शोभा को अपहरणकारी पदक पहनाए। भुजानों में कामदेव
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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