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________________ [११७ मति दें । भुवन भूषरण तुल्य रूपवती सुमंगला और सुनन्दा अब विवाह योग्य हो गई हैं । (श्लोक ७५७-७६५) उसी समय प्रभु ने भी अवधिज्ञान से यह जानकर कि तिरासी लाख पूर्व दृढ़ भोग कर्म मुझे भोग करने होंगे सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति प्रदान कर सन्ध्याकाल की भांति अधोमुख हो गया । (श्लोक ७६६-७६७) 1 स्वामी के मनोभाव को जानकर इन्द्र ने विवाह कर्म प्रारम्भ करने के लिए देवताओं को वहां बुलवाया । इन्द्र की आज्ञा प्राप्त कर अभियोगिक देवतागरण ने वहीं एक सुन्दर मण्डप निर्माण किया, उसे देखकर लगता जैसे सुधर्मा - सभा का अनुज हो। उसमें बनाए गए सुवर्ण माणिक्य और रौप्य के स्तम्भ मेरु, रोहणाचल और वैताढ्य पर्वत के शिखर से शोभित हो रहे थे । उसके ऊपर रखे हुए स्वर्णमय प्रकाशशाली कलश चक्रवर्ती के कांकरणी रत्नमण्डलों के समान शोभा देने लगे। वहां निर्मित वेदी विस्तृत किरणजाल में अन्य तेज को सहने में असमर्थ सूर्य किरणों का आभास दे रही थी । उस मंडप में प्रवेशकारी मणिमय शिलाओं की दीवारों पर प्रतिबिम्बित होकर वृहत् परिवार सम्पन्न से लग रहे थे । रत्न -स्तम्भों पर स्थित पुत्तलिकाएँ नृत्यकारिणी नर्तकियों की भांति प्रतिभात हो रही थीं । उस मण्डप के प्रत्येक प्रोर कल्पवृक्ष के तोरण बनाए गए थे । वे कामदेव के धनुष से शोभित हो रहे थे । स्फटिक द्वार की शाखा पर नीलमणि का तोरण बनाया गया था जो कि शरत्कालीन मेघमाला में उड़ती हुई शुक्र-पंक्ति-सा सुन्दर लग रहा था । कुछ स्थान स्फटिक मरिण से निर्मित हुए थे । वहां नियत किरण पड़ने के कारण वे अमृत की कीड़ा वापी से शोभित थे । कुछ स्थान पर पद्मराग मरिण की शिला की किरण प्रसारित हो रही थी । इसलिए वह मण्डप कुसुम्बी और विस्तृत दिव्य वस्त्र का संचयक लग रहा था । अनेक जगहों पर नीलमरिण शिला की अत्यन्त मनोहर किरणांकुर पड़ने से मण्डप पुनः रोपित मांगलिक भवांकुर युक्त-सा लगता था । कुछ स्थान पर मरकतमय पृथ्वी की किरण निरन्तर पड़ रही थी इससे वह वहां लाए नील और मङ्गलमय वंश की शंका उत्पन्न कर रहा था । उस मण्डप के ऊपर जो सफेद दिव्य वस्त्र का चंदोवा बांधा गया था वह ऐसा लगता था मानो आकाश गंगा ही चंदोवे के रूप में वहां के
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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