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उम्र की दृष्टि से ही होता है। समचतुरस्रसंस्थान सम्पन्न प्रभु का शरीर इस प्रकार शोभित होता मानो वह क्रीड़ा विलासिनी कमला की स्वर्णमय क्रीड़ा वेदिका हो ।
(श्लोक ६६०-६६५) उनके समान वयस धारण कर आए हुए देवकुमारों के साथ वे उन्हें परितुष्ट करने के लिए खेलते । खेल के समय प्रभु की धूलिलिप्त देह नुपुर पहने हुए पैरों से गवित हस्तिशावक-सी लगती। लीलामात्र में प्रभु जो कुछ पा सकते थे अनेक सिद्धि सम्पन्न देव भी उसे पाने में समर्थ नहीं थे। यदि कोई प्रभु की बल परीक्षा के लिए उनकी अंगुली पकड़ता तो उनकी स्वांस-वायु से धूलिकण की भांति उड़कर दूर जा गिरता ।
(श्लोक ६६६-६६९) प्रभु को आनन्दित करने के लिए कुछ देवकुमार कन्दुक की भांति उनके सामने उत्पतित होते । कुछ देवकुमार राजशुक का रूप धारण कर चाट कार की तरह 'जीवित रहो, जीवित रहो, आनन्द से रहो, आनन्द से रहो' ऐसी ध्वनि करते। कुछ देवकुमार मयूर होकर केका स्वर में गाते और नृत्य करते । प्रभु के मनोहर हस्तकमल का स्पर्श सुख प्राप्त करने के लिए कुछ देवकुमार हंस रूप धारण कर गान्धार स्वर में गीत गाते हुए उनके आस-पास घूमते । कुछ देवकुमार प्रभु के स्नेह रूपी अमृत का पान करने की इच्छा से कोंच पक्षी का रूप धारण कर उनके सामने मध्यम स्वर में बोलते । कुछ प्रभु का मन प्रसन्न रखने के लिए कोयल का रूप बनाकर निकटस्थ वृक्ष पर बैठकर पंचम स्वर में गाते । कुछ स्व-प्रात्मा को पवित्र करने के लिए प्रभु का वाहन होने की इच्छा से अश्व रूप धारण कर हिनहिनाते हुए भगवान् के निकट पाते । कुछ हाथी का रूप धारण कर निषाद स्वर में चिंघाड़ते हुए मुख नीचा कर प्रभु का चरण स्पर्श करते । कुछ वृषभ रूप धारण कर शृङ्ग द्वारा भूमि कुरेहते हुए वृषभ स्वर में भगवान् को आनन्दित करते । कुछ अंजनाचल भी भांति वृहद् महिष रूप धारण कर परस्पर युद्ध करते और प्रभु को युद्ध क्रीड़ा दिखाते । कुछ भगवान् के आनन्द के लिए मल्लरूप धारण कर अपनी दोनों भुजाओं को ठोकते-ठोकते अन्य को द्वन्द्व युद्ध में प्रवृत्त होने के लिए आह्वान करते । इस प्रकार योगी जैसे नाना रूप से प्रभु की उपासना करते हैं वैसे ही देवकुमार भी नाना प्रकार की क्रीड़ा प्रदर्शन कर भगवान् की उपासना करते ।