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________________ १०४] बुला रहे हैं। जो कमर-बन्ध बांधकर अस्त्र धारण किए प्रभु के चारों ओर खड़े थे वे भगवान् के अंगरक्षक से लग रहे थे। जो स्वर्ण और माणिक्य के पंखों से भगवान् को हवा दे रहे थे वे गानो आकाश में चमकित विद्युत लीला दिखा रहे थे। जो प्रानन्द से विचित्र वर्गों के दिव्य पुष्पों की वर्षा कर रहे थे वे वणिक से लग रहे थे। कुछ देवता अत्यन्त सुगन्धित द्रव्य को चूर्ण करके चारों ओर निक्षेप कर रहे थे मानो वे अपना-अपमा पाप निकालकर फेंक रहे हैं। कुछ देवता स्वर्ण उत्क्षिप्त कर रहे थे जैसे वे स्वामी की आज्ञा पाकर मेरुपर्वत की ऋद्धि को बढ़ा रहे हैं। कुछ देव महार्घ रत्न बरसा रहे थे। वे रत्न आकाश से उतरते तारों सदृश लगते थे । कुछ देव अपने सुमधुर गले से गन्धों को भी लज्जित करते हुए नूतन ग्राम (तार, मध्य षड़ज आदि स्वर) और राग में भगवान् का गुणगान कर रहे थे। कुछ देवगण मण्डित, घरण और छिद्रयुक्त वाद्य बजाने लगे। कारण, भगवान् की भक्ति नाना प्रकार से की जाती है। कुछ देव अपने चरणपात से मेरु को कम्पित करते हुए नत्य कर रहे थे। उन्होंने तो जैसे मेरु को ही नत्य परक कर दिया था। कुछ देवगण अपनी-अपनी देवियों सहित नाना भावों के हाव-भाव का प्रदर्शन कर उच्च कोटि का नाटक दिखाने लगे। कुछ देवता आकाश में उड़ रहे थे। वे गरुड़ पक्षी से लग रहे थे। कुछ कुक्कुट की भांति क्रीड़ा करते हुए धरती पर उत्पतित हो रहे थे। कुछ नट-सी सुन्दर चाल प्रदर्शित कर रहे थे। कुछ प्रसन्नता से सिंह की भांति सिंहनाद कर रहे थे, कुछ हस्ती की भांति उच्च वृहंतिनाद कर रहे थे तो कुछ अानन्द में अश्व की भांति हषारव। कुछ रथचक्र-सा घर्घर शब्द कर रहे थे। कुछ विदूषक की भांति हास्य उत्पन्नकारी चार प्रकार का शब्द कर रहे थे। बन्दर जैसे कद-कद कर वृक्ष शाखा को आन्दोलित करता है उसी भांति कुछ देवता उछल-उछलकर मेरुशिखर को आन्दोलित कर रहे थे। कुछ देवता धरती पर अपना हाथ इस प्रकार पटक रहे थे जैसे वे संग्रामप्रतिज्ञाकारी योद्धा हो। कुछ बाजी जीत ली हो ऐसा चीत्कार कर रहे थे। कुछ वाद्य यन्त्रों की तरह फूले हुए अपने-अपने गाल बजा रहे थे। कुछ नट की भांति चित्र-विचित्र रूप धारण कर कद रहे थे। कुछ रमणियों जैसे गोलाकार होकर बैठती हैं उसी प्रकार गोलाकार होकर मनोहर नृत्य के साथ सुमधुर गीत गा रहे
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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