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________________ [ ९१ भगवन्, अब ग्रापके चरणों का प्राश्रय लेकर कौन संसार सागर को प्रतिक्रम नहीं करेगा ? कारण, नौका के साहचर्य से लौह भी समुद्र श्रतिक्रम कर जाता है । आप भरतक्षत्र में लोगों के पुण्योदय से ही अवतरित हुए हैं । यह, वृक्षहीन प्रदेश में कल्पवृक्ष के उद्गम और मरु प्रदेश में नदी प्रवाहित होने जैसा है ।' (श्लोक ३२५-३३७) प्रथम देवलोक के इन्द्र इस प्रकार भगवान् की स्तुति कर अपने सेनापति नैगमेषी नामक देवता से बोले, 'जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में भरत क्षेत्र के मध्य भू-भाग में नाभि कुलकर की गृह लक्ष्मी की भांति वैभव सम्पन्ना मरुदेवी के गर्भ से प्रथम तीर्थंकर का जन्म हुआ है । उनके जन्म स्नात्र के लिए समस्त देवताओं को एकत्र करो ।' (श्लोक ३३८-३४० ) इन्द्र की प्रज्ञा प्राप्त कर एक योजन विस्तृत और अद्भुत ध्वनिकारी सुघोष नामक घण्टे को उन्होंने तीन बार बजाया । इससे अन्य विमानों के घण्टे भी उसी प्रकार बजने लगे जैसे मुख्य गीतकार के पीछे अन्य गीतकार गाना प्रारम्भ करते हैं । ( श्लोक ३४१-३४२) उन सब घण्टों के शब्द दिशा-दिशा में प्रतिध्वनित होकर इस प्रकार बजने लगे जैसे कुलवान् पुत्र से कुल की वृद्धि होती है । बत्तीस लक्ष विमानों में ध्वनित होकर वे शब्द प्रतिध्वनि के अनुरणन से शतगुणा वृद्धि को प्राप्त हुए । देवतागण प्रमादग्रस्त थे अतः उस शब्द को सुनकर मूच्छित हो गए । मूर्च्छा टूटने पर वे सोचने लगे ग्रव क्या होगा ? सजग देवतात्रों को सम्बोधित कर तब सेनापति मेघमन्द्र स्वर में बोले - 'देवगरण, अनलंघनीय शासक इन्द्र, देवी ग्रादि परिवार सहित ग्रापको प्रादेश देते हैं कि जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में भरत क्षेत्र के मध्य भाग में कुलकर नाभिराज के कुल में आदि तीर्थंकर का जन्म हुआ है । उनका जन्म कल्याणक उत्सव मनाने के लिए हमारी तरह ग्राप भी शीघ्र प्रस्तुत हो जाइए । कारण, ऐसा उत्तम अवसर और नहीं है ।' ( श्लोक ३४३-३४९) सेनापति का यह कथन सुनकर भगवान् की भक्तिवश कुछ देवता हवा के सम्मुख मृग की भांति धावित हुए या चुम्बक जैसे लौह को प्राकृष्ट करता है उसी प्रकार प्राकृष्ट होकर चले । कुछ देव इन्द्र के प्रदेशवश चले । अन्य कुछ देव देवांगनात्रों द्वारा
SR No.090513
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size24 MB
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