________________
त्रिलोकसार
५४
संख्याएं अकृति धारा को हैं । जैसे :- २, ३, ४, ६, ७, ८, १० २५४, २५५, २५७ ६५५३३, ६५५३४ और ६५५३५ इस धारा में वर्ग रूप अर्थात् कृतिधारा के स्थान नहीं मिलते। जैसे:१, ४, ६, १६, २५, ३६, ........-. ६५०२५ और ६५५३६ इस अकृति धारा में नहीं मिलेंगे, क्योंकि ये वर्ग रूप हैं। सबंधारा के स्थानों में से कृति धारा के स्थान घटा कर जो शेष रहते हैं. वे प्रकृति धारा के स्थान हैं।
गाथा : ६०
posining
**4
इस धारा की शेष विधि विषम घारा सदृश है। अर्थात् जैसे विधम धारा के जघन्य असंख्यात और जघन्य अनन्त की उत्पत्ति समधारा के जघन्य असंख्यात और जघन्य अनन्त ( १६ और (२५६ ) में एक एक अंक मिलाने से हुई थी, उसी प्रकार यहाँ भी होगी।
इस धारा में उत्कृष्ट संख्यात, उत्कृष्ट परीतासंख्यात, उत्कृष्ट युक्ता असंख्यात, उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात, उत्कृष्ट परीतानन्त और उत्कृष्ट युक्तानन्त आते हैं, शेष अर्थात् उत्कृष्ट अनन्तानन्त और संख्यात असंख्यात तथा अनन्त के सभी जघन्य नहीं आते । अथ घनधारा कथ्यते
इपिर्दिकेवलदलमूलस्सुवरि चडिदठाणजुदे । तणमंतं बिंदे ठाणं आसष्णघणमूलम् ।। ६० । एकाष्टप्रभृति केवलदल मूलस्योपरि चटितस्थानयुते । तद्वनमंतं वृन्दे स्थानं आमन्नघनमूलम् ।। ६० ।
६५
इति । प्रवश्यंते । एकाष्टप्रमृति १, ८, २७, एवममन्त्रानि षनस्थानानि गत्या केवल - बलस्य ३२७६८ घनरूपस्य यन्मूलं ३२ तस्मिन् लघुपरि ३२ चटितस्थानानां उपर्युपरिगतधनमूलमान ३३, ३४, ३५, ३६,३७,३८,३६,४०, संस्थाने ते सति तस्य ४० बमो मन्तो भवति ६४०००। तस्येति कथम् ? यस्मादात्मघनमूल ४० पाधिकस्य घनमूलस्य ४१ घने गृहीते ६८६२१ केवलज्ञानं व्यतिक्रम्पराविरुत्पद्यते तस्मात्तस्यैव ४० घन: ६४००० घरधारायामन्तो भवति । स एवासइस्युपले तन्मूलमेव चासन्प्रघनमूलमिति कथ्यते । स्थानं केवलज्ञानस्यासन्न घनमूल प्रमाणं
क्या ॥ ६० ॥
६. घनधारा का स्वरूप
गाथार्थ :- एक और आय को आदि करके केवलज्ञान के अर्धभाग के घनमूल से ऊपर ऊपर जो घनमूलरूप स्थान प्राप्त हों, उनको केवलज्ञान के अर्धभाग के घनमूल में मिलाने से जो स्थान बनता है उसे आसन्न घनमूल कहते हैं । इस आसम्नघनमूल का घन ही इस धनधारा का अन्तिम स्थान है ॥ ६० ॥
संगुले भने गृहले ( ब०५०) 1