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गाथा: ४.
कोणासन्यः चना तं त्रिवारवगितसंवर्ग कृत्वा तत्र दातव्याः । धर्माधर्मागुरुलधुगुणाविभाग प्रतिच्छेदाः ॥ ५ ॥ लब्ध त्रिवारं वर्गितसंवर्ग कृत्वा केवलज्ञाने ।
पनीय तं पुनः क्षिप्ते समनन्तानन्त मुस्कृष्टम् ।। ५१ ।। प्रवरा । प्रवरानम्तानात राशि निःप्रतिकं कृत्वा विरलनाविक त्रिशालाका समाप्य पत्र लब्ध एते प्रक्षेप्तव्याः ॥ ४ ॥
सिया। सिद्धरामिः ३ मोवराशे (१६) मातक भागः, सोनम्तगुणः पृषिम्मास्चितुष्टयप्रत्येकवनस्पतित्रसरातमिन्यूनसंसारिराशिरव १३ = निगोयराशिः, निगोदरायः सकाशात बनस्पतिराशि: प्रत्येकम साधिक: १३ = । ततो जीवराशेरनन्तगुणः पुगलराशि: १६ प ततोमन्सगुणः' कालराशिः १६ खस, ततोयनन्तगुणः प्रलोकाकाशराशिः १६ । पोते पनन्तश्यप्रक्षेपाः ॥४९॥
त तिमिण । त राशि त्रिवारगिलसंवर्ग कृपा विप्रति विरलनादिकं त्रिशालाकां च समाप्येत्यर्थः । तत्र रामौ वातव्याः षषिमंत्रव्यागुरुलघुगुरगाविभागप्रतिच्छेवा: । बस ॥ ५० ॥
____सद्धं तिबार । लब्धं त्रिवार गितसंवर्ग कृस्ता पूर्वमिव त्रिप्रति पिरलमावि शिलाको च समाप्येत्यर्थः । एतदेव केवलशाने प्रपनीय तदेव तस्मिन् पुननिक्षिप्ते यो राशिवत्पद्यते । मन्तामन्त स्पोरकट जानोहि ॥ ५१ ॥
गापार्य:-जघन्य अनन्नानन्न रूप राशि का तीन बार पूर्वोक्त प्रकार विरलन, देश, गुणन और अगादि क्रिया को पृन पुनः करते हुये प्रथम शलाका, द्वितीयगलाका और तृतीय शलाका को पूर्वोक्त प्रकार से ममाप्त करने के बाद मध्यम अनन्तानन्त स्वरूप जो लन्ध प्रमाण प्राप्त हो उसमें (१) जो सम्पूर्ण जीव राशि के अनन्ला भाग प्रमाण है, ऐसी सिद्ध राशि । ( २ । (पृथ्वीकायादि चार स्थावर, प्रत्येक वनस्पलि और श्रस इन तीन राशियों से रहित संसार राशि प्रमाण, ऐम निगोद जीवीं के प्रमाण रूप ) निगोद राशि, जो कि सिद्ध राशि से अनन्त गुणी है। । ३) प्रत्येक वनस्पति सहित निगोद वनस्पत्ति राशि अर्थात् सम्पूर्ण वनस्पति । ( ४ ) जीव राशि से अनन्त गुणी पुद्गल राशि (५) पुद्गल राशि से अनन्नानन्त गुणी काल के ममयों स्वरूप कालराशि । ( ६ ) काल राशि से अनन्त गुणे प्रमाणवाली अलोकाकाश राशि । अनन्त स्वरूप ये छह राशियां क्षेपण कर देना चाहिये ।
छह राशियों को मिलाने के बाद जो लब्ध प्राप्त हो उस महाराशि को तीन वार गित संगित करना है स्वरूप जिसका ऐस विरलन, देय गुग्गन और ऋणादि क्रियाओं को पुनरावृत्ति द्वारा शलाका त्रय निष्ठापन कर जो विगद राभि उत्पन्न हो उसमें धर्म द्रश्य और अधर्म द्रव्य के अगुरुल घुगुण के अविभागी प्रतिच्छेदों का प्रमाण मिला देना चाहिये।
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नोऽनन्तानन्तगणः ( 1०, प.)