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________________ गाथा ३१ लोकसामान्याधिकार एक द्वोप समुद्र में एक एक दाना डालते हुये जिस बीप या समुद्र पर दाने समाप्त हो जाय वहाँ से नीचे के अर्थात् जम्बूद्वीप पर्यन्त पहिले के सभी द्वीप समुद्रों के ( प्रमाण , बराबर एक कुण्ड बनाकर गोल सरसो से भरना वाहिथ ।। २५, ३० ।। विशेषार्ष:-मंख्या प्रमाण का ज्ञान कराने के लिये गाथा २०१४ में पार कुण्डों की स्थापना की थी। उनमें से जम्बू द्वीप बराबर ब्यास और सुमेरु की जड़ के बराबर गहराई बाले प्रथम अनवस्था कुण्ड को शिखा सहित गोल मरसों में पूर्ण भरकर एक सरसौं शलाका कुण्ड में डालना चाहिये तथा अनवस्था कुण्ड की सरसों बुद्धि द्वारा या देवों द्वारा उठाकर एक एक दाना एक एक द्वीप समुद्र में डालते हुए जिस द्वीप या समुद्र पर सरसों समाप्त हो जाय, वहीं से जम्बूद्वीप पर्यन्त व्यास वाला और १००० योजन गहरा दूसरा अनवस्था कुषद्ध बनाकर गोल सरसों से भरना चाहिये। अथ तस्य द्वितीय कुषस्य क्षेत्रफलानयनोपायभूतगच्छमाह : रिदिये पढम कुंडं गच्छो तहिए दु पढमविदियदुर्ग । इदि सव्वपुष्वगच्छा तर्हि तहि सरिसवा सज्झा ॥ ३१ ॥ द्वितीये प्रथम कुपडं गच्छः तृतीये तु प्रथमद्वितीयविकम् । इति सर्वपूर्वगच्छाः तः तैः सपंपाः साध्याः ॥ ३१ ॥ विधिये । द्वितीयकुण्डसपानपने प्रपमकुण्डसर्षपप्रमाणं गया, तृतीयकुण्डसर्षपानपने प्रथमद्वितीयकुणासपमानं गण्यः इति सपंपूर्वपूर्वगच्छास्ततः सर्षपाः बाध्याः गच्छं गृहीत्वा "ऊरणाहियपर" इत्याविना सूचीयासमानीय पश्चाए "वासो तिगुणो परिही" इस्यादिमा तत्र तत्र कुन्डे सर्वपाः वाध्याः इस्पर्णः।। ३१॥ दूसरे आदि अनवस्था कुण्डों का प्रमाण लाने के लिये गच्छ का प्रमाण कहते हैं : गाथा:-दूसरे अनवस्था कुण्ड के लिये प्रथम कुण्ड के सरसों पच्छ है। तीसरे अनवस्था कुण्ड के लिये प्रथन और द्वितीय कुण्ड के सरसों गच्छ हैं। इसी प्रकार जो पूर्व पूर्व के गच्छ हैं, उन उन के द्वारा उनरोत्तर अनवस्था कुण्डों की सरसों का प्रमाण साधा जाता है ॥ ३१॥ _ विशेषार्थ :- दूसरे कुण्ड्ड के सरसों का प्रमाण प्राप्त करने के लिये प्रथम कुण्ड के सरसों गच्छ स्वरूप हैं। तीसरे कुपड के सरसों के लिये प्रथम और द्वितीय कुण्डों के सरसों गच्छ स्वरूप हैं, तथा चौथे कुण्ड के सरसों के प्रमाण के लिये प्रथम, द्वितीय और तृतीय कुण्डों के सरसों का प्रमाण गच्छ है । इसी प्रकार सर्व पूर्व पूर्व गच्ट्री के द्वारा आगे के अनत्र स्था कुष्ठों के सरसों का प्रमाण माध्रना चाहिये, और जन उन गमलों को ग्रहण कर "रूक गाहियपद" गाथा ३०९ में कहे गये करणसूत्रानुसार द्वितीय आदि अनवस्था कुण्डों का सूची व्यास प्राप्त कर "वासोतिगुणोपरिधि" गा०१७ के करणसूत्रानुसार सूचीव्यास को ३ से गुणित कर परिधि का प्रमाण ज्ञात कर गाथा २६ के अनुसार धनफल निकाल कर सरसों का प्रमाण प्राप्त कर लेना चाहिये।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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