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________________ त्रिलोकसार अब परस्पर गुणा करने से जो अ प्राप्त होते हैं, उन्हें कहते हैं। गापा :- एक नव नव सात, एक, एक, दो, नव, तीन आठ, चार, पाँच, एक, तीन, एक, छह पन्द्रह जगह छत्तीस और चार का ग्यारहवाँ भाग यह प्रथम कुण्ड के उभय क्षेत्रफल के अंकों का प्रमाण है ।। २८ । विशेषार्थ : - १९९७११२६३८४५१३१६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६ यह प्रथम अनवस्था कुण्ड के उभय क्षेत्रफलों में सरसों के अद्धों का प्रभाग है । संख्या प्रमाण प्रारम्भ : १. जधन्यसंख्यात संख्यात दो से प्रारम्भ होता है, अत: २ जघन्य संख्यात है । २. मध्यम संख्या - जघन्य संख्यान में एकादि अ द्वारा वृद्धि को प्राप्त तथा उत्कृष्ट संख्यात से एक एक अक्क हीन तक के जितने विकल्प हैं वे सब मध्यम संख्यात हैं। ३. उत्कृष्ट संख्यात - जघन्य परीता संख्यात में से एक अङ्क होन करने पर उत्कृष्ट संख्यात की प्राप्ति होती है। अथ पहुदिरसह अग्वत्था पूरदेवा' इत्युक्त्वा तत्प्रमाप्रसक्त्यानतरसम्बन् निरूप्येदानीं प्रकृत मनुसन्दधाति - पुष्णा सहमणवत्था हृदि एगं रिवत्र सलागकुंडहि । तं मज्झिमसित्थे मदिए देवो व विचणं ।। २९ ।। दीवसमुद्दे दिये एक के परिसमध्पदे जत्थ | तो हिडिमदी अब कयगतो तेहिं भरिदन्त्रो ॥ ३० ॥ पूर्णा सदनवस्था इत्येकां क्षिपशलाकाकुण्डे तन्मध्यसिद्धार्थान् मत्या देवो वा गृहीत्वा ॥ २६ ॥ द्वीपसमुद्र दत्त एकैकस्मिन् परिसमाप्यते यत्र । नतः अधस्तनद्वीपोदधिषु कृतगतस्तैः भर्नव्यः ।। ३० ।। पुण्ला सह पूर्ण सकृदनवस्था इत्येकी क्षिप शलाकाकुण्डे तन्मध्यसक्षवान् मध्या देवो बा गृहीत्वा ॥ २६ ॥ दोष द्वीपे समुद्रे च ते एकैकस्मिन् स परिसमाप्यते यत्र तत् प्रारम्य द्यथस्तन सर्वद्रोपोवविषु प्रानवेप्रमाणेन ( १००० ) कृतः पुनः सर्वयः ॥ ३० ॥ ४. गाथा १६ से २८ तक गाथा १५ में कहे हुये "दुप्पहृदि सरिसवेहि भरणवत्था पूरयेदश्वा" के प्र में कथन किया गया है। अब उसी गाथा १५ के सम्बन्ध को जोड़ते हुये (जघन्य परीतासंख्यात को) कहते हैं -- r ņ गाथा : २९-३० गाथार्थ :- एक बार अनवस्था कुण्ड पूर्ण भर जाय तब एक सरसों शलाका कुण्ड में डालना चाहिये तथा अनवस्था कुण्ड के जितने सरसों हैं, उन्हें बुद्धि द्वारा या देयों द्वारा ग्रहण कर प्रत्येक एक .
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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