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________________ 5 गाथा: २७-२८ लोकसामान्याधिकार (१ल ४३लx३) x ०० अर्थात् (१ल १ल x ३)x००० अर्थात् ( व्यास - व्यास ४३) x202800 अर्थात् व्यास का वर्ग x३x97800 प्राप्त होता है। इसके व्यवहार योजन, अंगुल, यव, एवं गोल सरसों बनाना चाहिये । शिखा सहित अनवस्था कुण्ड का चित्रण :-- अय राश्यमुच्चारयति वादालमट्टयण इगिहीण सहस्साहदं एगारहिदं । इगितीससुण्णसहियं जंबूदीघुभयसिद्धत्था ।। २७ ॥ बादालमष्टयनकहीनसहस्राहतं एकादशहितम् । एकत्रिशच्छून्यसहितं जंबूद्वीपोभयसिद्धार्थाः ।। २७ ।। पावाल । बाबालं ४२- प्रष्टधन ५१२ एकहीनसहलाat at माहत ४२-४५१२XESE एकादशहृतं ४२- ४५१२४६९ एकत्रिशच्यसाहित बमोपामितकुण्डशिक्षाफलयोः सिवाय ॥ २७ ॥ अब उपयुक्त उभयफल में सरसों राशि के अङ्क कहते हैं--- गापार्थ :-बादाल { ४२= ) को आठ के घन ( ५१२ ) एवं एक कम एक हजार ( ९९९ ) से गुणित कर ११ का भाग देने से जो लब्ध प्राप्त हो उसे ३१ शून्यों से सहित करने पर जम्बूद्वीप सहपा कुण्ड और उसकी शिखा, दोनों के क्षेत्रफल स्वरूप सरसों का प्रमाण प्राप्त होता है ।। २७ ।। विशेषार्थ:-सुगम है। अथ परस्परगुणिताङ्कमुच्चारयति इगिणवणवसगिगिगिदुगणवनिण्णहचउपणेक्कतिगिछक्कं । पण्णरछचीसजुद इरहिदचउरो य . पढसुमयं ॥ २८ ॥ एकनवनवसप्लेकैद्रिकनवत्रिमष्ट चातुः पञ्च कश्येकषट्कम् । पञ्चदशविंशानं हरहितचतुष्कं च प्रथमोमयम् ॥ २८ ॥ इगिरणव। एकमवमव सप्तककद्विकनपत्रिमचतुःपञ्चकत्येकवट्कम् पनवशषत्रिंगात हरहितचतुष्क प्रथमानवस्पोभमफलं स्यात् ॥ १९७११२९३८४५११६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६ ३६३६३६३६३६ ॥२ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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