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त्रिलोकसार
व्यासा कृतिः त्रिगुणा बेधगुणैकादशसहित व्यासगुणा । एकादशप्रविभक्ता इच्छित कुण्डानामुभयफलम् ॥ २६ ॥
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वासद्ध | व्यासार्थवर्णः १ x १ त्रिगुणो १ x १ x ३ मे बरिलै कावा सहित कलमव्यास गुरण एकादशप्रविभक्त १ x १ x ५०० ईप्सितकुण्डानामुभयफलं भवति । तथा । "reeगुणपरिही" इत्यादिना कुएडफलमानीस ३ल x १ x १००० । “वासो" इत्यादि रिस्पा कारसमं वैषैन गुणित फल विभागप्पिय" इति सुख फलमानी ३ x x x पचाल कुफल शिखा फलयोः परिषि "बालकवी" इति गापोच्चारित फलप्रदर्शनार्थ त्रिभिः सम्मेल किमुभयत्र गुणकारकपेल संस्थाय १ x १ x ३ X १००० यथायोग्यमपव समवेनाङ्कस्याङ्क लकारस्य लकारं वयित्वा प्रधिकलक्षं इतराङ्क । ११००० ) मेलनें उभयफल' स्थात् । इदं दृष्ट्वा 'वासद्धकवयानि उक्त' । एतस्यूलफल ं व्यवहारयोजनाविकं कर्तव्यम् ॥ २६ ॥
गया : २६
Hd कुण्ड और शिखा दोनों के क्षेत्रफल को मिला कहते है :--
गाथार्थ :- व्यास के अर्धभाग का वर्ग कर उसको तिगुणा करना चाहिये, पुनः वेध को ११ से गुणित कर उसमें व्यास जोड़ना चाहिये। इस प्रकार प्राप्त हुई दोनों संख्याओं का परस्पर में गुणा करने से जो लब्ध प्राप्त हो उसको ११ मे भाजित करने पर विवक्षित कुपड और उसकी शिखा दोनो का सम्मिलित क्षेत्रफल प्राप्त होता है ||२६||
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विशेषार्थ :- व्यास ( १७ ) के अर्ध भाग ( १ ) के वर्ग १ १ल की तिगुना करने से १ x १ x ३ प्राप्त होता है । कुण्ड की गहराई १००० योजन है, इसे ११ में गुणित ( १००० x ११ ११००० ) कर प्रयास में जोड़ देने पर १११००० प्राप्त होते हैं, इसमें १३ x १ x ३ को गुणित करने से १ल×१०×३×१११००० हुये । इन्हें ११ से भाजित करने पर कुण्ड और शिखा दोनों का सम्मिलित क्षेत्रफल १ल ×१७ x ×३४१११००० प्राप्त होते हैं ।
तद्यथा-मोतिगुणो परिही गा० १७ के अनुसार कुछ का क्षेत्रफल - ३ × १ x १००० प्राप्त होता है । "वासी" एवं गाथा २२ की टीकानुसार सूत्रफल ३ x १ x ३ [x] है । गाथा २६ के अनुसार खातफल को सिद्ध करने के लिये, कुण्डफल और शिखाफल इन दोनों में परिधि को ३ से छेद
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कर और ३ को गुणकार रूप से रखने पर कुण्डफल ( १ x १
x १००० x ३ ) और शिखाफल
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( १ x १ x १ x ३ ) प्राप्त होता है। इन दोनों में १० x १०००, और शिखाफल में
१००००० ) – १९१००० प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कुण्ड व शिला इन दोनों का
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१ व्यासार्धकृतिस्त्रिगुणो ( ब०, प०, ) |
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x ३ समान हैं, तथा कुण्डफल में
अधिक हैं। इन दोनों को जोड़ने पर ( १००० + १ल = ११००० +
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तिफल