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गाथा : २४-२५-२६
लोकसामान्याधिकार अय गुणितराशिमुच्चारयति --
वेरुसदियां चमणा महारोहिं अणियं । तेचीमसुण्णजुसं हरमजिदं जंबुदीवसिहा ||२४|| द्विरूपतृतीयपञ्चमवर्गअष्टादशभिः संगुरिणतः ।
यस्त्रिंशच्छ्न्ययुक्त हरभक्तः जम्बूद्वीपशिखा ॥२४॥ बेव। विरूपवर्गधारातृतीय ( २५६ ) पश्चमवर्गः ( ४२- ) महादशभिः तंगुणित: त्रयस्त्रिंशाच-पयुक्त हर (एकाचवा ) भक्तवचेत जम्बूद्वीपशिखाफल श्यति ॥ २४ ॥
अब गुणित राशि को कहते हैं :
नापार्ष:-द्विरूपवर्गधारा के तीसरे ( २५६ ) और पांचवें वर्गस्थान (बादाल) का परस्पर में गुणा करने से जो लब्ध प्राप्त हो उसको १८ से गुशित कर तेतीस शून्यों से सहित करना चाहिये । इन्हीं लन्धाकों में ११ का भाग देने से जम्बूद्वीप सदृश कुण्ड के ऊपर की हुई राशि के गिखाफल के गोल सरसों का प्रमाण प्राप्त होता है ॥ २४ ॥
विशेवायं :- सुगम है। अथ सिद्धामुच्चारयलि
इगिमगणरणवदुगणमणभट्टचउपणच उक्कपणसोलं । सोलसचीमजुदं हरहिदचउरो य पदमसिहा २५।। एकसप्तनवनवद्विकनभोनभोष्टचतुःपञ्चचतुष्क पञ्चषोडश ।
षोडशषत्रिशतं हरहितचतुष्कं च प्रथमशिखा ॥ २५ ॥ इगि । एकसप्तनवनातिकशून्यशुम्या चतुःपञ्चबलुकपञ्चषोडशषोडशवत्रिंशद्युतं' एकाबशभक्तचतुष्कं प्रथमकुण्डशिखाफलं भवति । १७६६२००८४५४५१६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६ ३६३६३६३६ प ।। २५ ॥
अब गुणनफल द्वारा प्राप्त हुए अंकों का प्रमागा कहते हैं :
गाथार्ष:-एक, सात, नव, नव, दो, शून्य, शून्य, आठ, चार, पांच, चार, पाच, सोलह और इसके आगे सोलह बार छत्तीम एवं चार का ग्यारहवां भाग प्रथम कुण्डकी शिखाके सरसों का प्रमाण है ॥२५॥
विशेषार्थ :-१७६९२००९४५४५१६३६३६३६३६३६३८३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६ अङ्क प्रमाण जम्बूद्वीप सदृश प्रथम अनवस्था कुमार की शिखाके सरसों होते हैं। अथ कुण्डशिखयोः फलं मेलयित्वोच्चारयति
वासद्धकदी तिगुणा घेहगुसोक्कारसहिदवासगुणा ।
एयारस पविभत्ता इच्छिदकुण्डाणमुभयफलम् ।। २६ ।। १ हरहतचतुष्कं (10, प.)।