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पिलोकसार
गाथा : २३ विशेषार्थ :- कुण्ड का व्यास १ लाख योजन का होने से परिधि ३ लाख योजन की हुई । परिधि का ११ वा भाग परिधि अथवा ३ल हुआ । इस ल को परिधि के छठवें भाग (परिघि ) के वर्ग से गुणित करना है, ३0 x ३ x ३ ल का परस्पर में गुणा करने से समस्त कुण्डों का शिक्षाफल प्राप्त हो जाता है; क्योंकि शलाका, प्रतिशलाका और महागलाका कुण्ड भी प्रथम अनवस्था कुण्ड के सदृश १ लाख योजन ब्याम बाले हैं. अतः समस्त कुण्डों की शिखा समान होगी।
प्राप्तफल को वासना कैसे होती है ? उसे कहते है :--
व्यास से निगुनी परिधि (१ल. ४३ : ३ल हुई। इसको व्यास के चौथाई (ल) से गुरिणत करने पर ल x १ल क्षेत्रफल प्राप्त होता है। इसको शिखा की ऊंचाई ( घेघ । ३ल से गुणित करने पर ३ल ४१ल x ३ल लन्ध प्राप्त होता है । 'फलतिभागप्पिय गा० १९ के अनुसार इसका ( ३लx १ल ४३ल) एक तिहाई करने से ३ल x १ल-३0 x शिखा का घनफल प्राप्त होता है । तिहाई के तीन से परिधि के ३ का छेद कर देने पर ३ल x १ल ४३ल प्राप्त हुआ। के स्थान पर १४ करने से १लx१ल ३ल प्राप्त हुआ। के अंश व हर को ३ से गुणित करने पर ३0 x ३0 x ३ल अथवा (३ल)Pxaल हुआ। परिधि ३ल है, अतः ३ल के स्थान पर परिधि स्थापन करने से (परिधि) x परिधि अति परिधि के ११ वे भाग को परिधि के छठवें भाग के वर्ग से गुणा करने पर शिखा का घनफल प्राप्त होता है। यह स्थूल क्षेत्रफल है । पहिले के सदृश इनके भी व्यवहार योजन आदि बना लेमा चाहिये। अथ केषां के वेध परिध्येकादशभाग इत्याहु
तिलसरिसवचल्लाहइचणयतसिकुलत्थ रायमामादि । परिणाहेक्कारसमो हो जदि गयणगो रासी ||२३|| तिलसर्षपबल्लाहकीचणकातसिकुलत्थराजमाषादेः ।
परिध्ये कादशो बेधो यदि गगनगो राशिः ॥ २३ ॥ तिल । तिलसर्षपयल्लाहकोचणकात सिकुलस्वराजमावाने परिष्येकावशो वेषो पवि गगनराशिः भवेत् ॥२३॥
किन किन वस्तुओं का वेध (ऊंचाई) परिधि के ग्यारहवें भाग प्रमाण होता है, उसे कहते हैं:
गावार्थ :----आकाश को व्याप्त करने वाली तिल, सरसों, वल्ल, अरहड़ चना, अलसी, फलस्थ और उड़द आदि की शिखाऊ राशि परिधि के ग्यारहवें भाग प्रमाण होतो है ॥२३॥
विशेषाम:-तिल, सरसी आदि वस्तुओं के ढेर के मूल भाग की परिधि का जितना प्रमाण होता है आकाशगत ढेर का वेध ( ऊचाई ) उसका ग्यारहवा भाग होता है जैसे :- पृथ्वी पर लगी हुई तिल को राशि की परिधि का प्रमाण ग्यारह हाथ है, तो वह राशि पृथ्वी से एक हाथ ची होगी।
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