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गाथा : २१-२२
लोफसामान्याधिकार विधुनिधिनगनवरबिनभोनिधिनयनबनिनिधिखरहस्तिनः।
__एकत्रिशछुन्यसहिताः जम्बो लन्धसिद्धार्थाः ॥ २१ ॥ . विषु। एकनवसप्तनवढावाशून्यनदिमानवनवषयो एकत्रिशम्पसहिताः सम्यूद्रोपे लसपा: १९७६५२०९२९६६८००००००००००००००००००००००००००००००० ॥२१॥
इनको परस्पर गुणित करने से जो गुणनफल प्राप्त होता है, उसे कहते हैं
गापा:-विधु. निधि, नग, नव, रवि, नभ, निधि, नयन, बल, ऋद्धि, निधि, खर और हाथी इनकी संख्याओं को ३१ शुन्यों से सहित करने पर जम्बूदोपसहण प्रथम अनवस्था कुण्ड के सरसों प्राप्त होते हैं ।। २१ ॥
विशेषार्थ :- विधु चन्द्रमा का नाम है अतः विधु १, निधि, नग (पर्वत) ७ ९, रवि ( सूर्य, राशि की अपेक्षा ) १२, नभ, निधि ६, नयन २, बल ( बलभद्र ) १, ऋद्धि , निधि ९, खर ६ तथा हाथी ( दिग्गज ) - इन समस्त संख्याओं को ३१ शून्यों से माहित करने पर निम्नलिखित प्रमाण प्राप्त होना है-१९७२१२०९२६९९६८000000०००००000000000000000000८. यह जम्बूद्वीप सदृश प्रथम अनवस्था कुपए के सरसों का प्रमाण है। सर्वेषां कुण्डानां सिद्धशिखाफलमुच्चास्यति--
परिणाहकारसम भागं परिणाहभागस्स | बग्गेण गुणं णियमा सिहाफलं मकुंडाणं ॥२२॥ परिणाहै कादशभागः परिणाहषष्ठभागम्य 1
बर्गेगा गुण नियमात शिताफलं सर्वकुण्डानाम् ॥२२॥ परिणा। परिषे ( ३ ) रेकायशो भागः (३स) परिधः षभागस्य बर्गरण ( ल ४ ला गणितो नियमात शिक्षाफ 'सकुष्माना भवति । प्रसिद्धफलस्य वासना समितिवेदाह । म्यासः त्रिगुणः परिधिः ( बल ) ग्यासचसुपहिसः (३ल x १ल) क्षेत्रफलं परिष्यकाशमाग (३)-वेषेम पुणित फल (इल ४१ल - ३ल) "फलतिभागप्पिय" इति मागतेन भागहारत्रिकेण सममुपरितनपरिषि त्रिकमपवायं श्ल व्यासचतुशमहाश्चतुष्कं विरलयिस्वा (इल x) गायोग्यारंणार्थमुपर्यवश्व विमिर्गुणिलं दृष्ट्वा परिणामकारसमेत्यायुक्त । एतत्स्यूलफलं (३ल ४३ल x ३ल) पूर्ववत व्यवहारमोजनाविक पार्सव्यं ॥२२॥
समस्त कुण्डों के सिद्ध हुए शिखाफल को कहते हैं :
गाथा:-परिधि के ग्यारहवें भाग की परिधि के छठवें भाग के वर्गसे गुणित करने पर समस्त कुण्डी का शिखाफल प्राप्त होता है ।। २२ ।।
१ च०, ५० प्रती 'भवति' नास्ति।