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त्रिलोकसार
गाथा : २०-२१
एवं ऋण निकाल लेने पर [३-(३४३)=1x1] वैध ३४३
रह जाता
है । अर्धगोलक के तीसरे खण्ड की भुजा ३ और कोटि का परस्पर गुगाा करने से { ३x;)क्षेत्रफल प्राप्त होता है। इस क्षेत्रफल में वेध (३३ -- है, अतः क्षेत्रफल को 1x1 ) बेध से गुणित करने पर xxअर्धगोलक के तीसरे भाग का घनफल (Ex.x। प्राप्त होता है । पूर्ण गोलक में इसी प्रकार के ६ भाग होते हैं । जबकि अर्ध गोल गेंद के एक त्रिभाग का धनफल Ex.x ) है तब पूर्ण गोल गेंद के ६ भागों का धनफल कितना होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर ६ भागों का घनफल xxxxx३४३= प्राप्त होता है। यही पूर्ण गोल का खातफल ( घनफल ) है । त्रिभुज क्षेत्र का क्षेत्रफल एवं घनफरल "मुखभूमिजोगदले" गाथा १६३ के अनुसार, चतुर्भुन क्षेत्र का क्षेत्र फल और धनफल "भुज कोडि" गा० १२२ के अनुसार तथा वृत्तक्षेत्र का क्षेत्रफल और थनफल "वासो तिगुणों परिहीं" गा० १७ के अनुसार प्राप्त करना चाहिये। सूची-येष को तिहाई से गुणित करने पर सुचीक्षेत्र का घनफा होता है । - अथ स्थूलफलराशिमुच्चारयति
बादालं सोलमकदिसंगुणिदं दुगुणणक्समम्मन्थं । इगितीससुष्णसहियं सरिसबमाणं वे परमे ॥ २० ॥ बादालं पोडशकृतिसंगुगिगात द्विगुणनवसमभ्यस्तम् ।
एकत्रिंशत्गून्यमाहितं सर्पपमानं भवेत् प्रथमे ।। २० ॥ बावालं । बादल ४२ - पोस्वकृति २५६ संगुणितं द्विगुण नव १८ समभ्यस्त एकत्रिशक शून्यसाहित' सर्वपमानं भवेद प्रपमे कुण्डे ॥२०॥
अब स्थूल क्षेत्रफल में सरसों का प्रमाण कहते हैं :--
गाथा: बादाल (४२= ) को सोलह की कृति ( २५६ ) से गुणा करने से भी लब्ध प्राप्त हो उसमें दुने नब (१) का गुणा कर ३१ गुन्यों से सहित करने पर प्रथम अनवस्था कुण्ड के सरसों का प्रमाण प्राप्त होता है ।।२०।।
विशेषा:-विशेष के लिये देखिये गाथा १८ का विशेषार्थ । अर्थतद्गुणितफलमुच्चारयति
विधुणिधिणगणवरविणमणिधिणयणबल द्धिणिधिखराइत्थी। इगितीससुषणमहिया जंबुए लद्ध सिनत्था ।। २१||