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________________ पापा। ९. नरतियंग्लोकाधिकार में सर्वदिशाओं को निर्मल करती हैं। इन कटों के अभ्यन्तर की ओर चारों दिशाओं में कम से वैडूर्य, रुपक, मरिणकट और राज्योत्तम ये चार फट हैं। इनमें क्रम से रचका, रुचककोति, ववकान्ता और रुचकप्रभा ये चार देवियों रहती हैं। ये सीर्थङ्कर के जम्म समय जात कर्म करने में कुशल होती है ।। १५७-५८-९५३ || विशेषार्ग:-रुचक पर्वत के अभ्यन्तर बूटों में पूर्वदिशा में विमल कूट है जिसमें कनका देवी वास करती है। दक्षिण के निरयालोक कूट में शतहदा, पश्चिम के स्वयम्प्रभ कट में कनकचित्रा और उत्तर के निस्योयोत कट में सौदामिनी देवी रहती है। ये चारों देवियाँ तीर्थकर के बमकाल में सम्पूर्ण दिशाओं को प्रसन्न रखती है। इन कटों के अभ्यन्तर की ओर पूर्व के देहर्य कट में रुचका, दक्षिण दिशा के रुचक कट में रुचककीति, पश्चिम दिशा के मणिकट में चक्रकान्ता और उत्तर दिशा के राज्योत्तम कट में रुचकप्रभा ये चार देविया रहती हैं। तीर्थर के जन्म समय ये जात कम करती हैं। ये सभी जात कर्म में अतिनिपुण होती है । यथा: H Relamat.14 SHARAN. RC/PCS CA GANA Hand loss AU HTTP Hij AATANI Ah Nagar S... MEANIuurNENTANIN/ Kyr 5 Kaus .. .44 hargrl भय कुण्डलरुचकस्पटानां व्यासादिकमाह ससि कूडाणं बोयणपंचसय भूमिविस्थारो | पणसयमुदमो बदल हवासो कुण्डले रुजगे ।। ९६.॥ सर्वेषां कटानां योजनपब्रशतं भूमिविस्तार। पशमुदयः तहसमुखज्यासः कुडले बचके ॥१॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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